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________________ ( 264 ) प्रपन 6-- एकान्त व्यवहाराभासी दर्शनाचार के लिए क्या करते उत्तर-विसी समय प्रगमता (कोच मानादि सम्बन्धी राग द्वेप की मन्दता) किसी समय सवेग (विकारी भावो का भय) किसी समय अनुकम्पा, दया (सवं प्राणियो पर दया का प्रादुर्भाव) और किसी समय आस्तिक्य मे (जीवादि तत्त्वो पा जैसा अस्तित्व है वैसा ही मागम-युक्ति से मानना) वर्तते हैं तथा का, काछा, विचिकित्सा, मूटदृष्टि आदि भाव उत्पन्न ना हो ली शुभोपयोगरूप सावधानी रखते है, मान व्यवहारनयरूप उपगूहन, स्थितिकरण, वात्सल्य, प्रभाबना इन गो की भावना विचारते हैं और इस सम्बन्धी उत्साह को बार-बार बढाते है। प्रश्न ७एकान्त व्यवहाराभासी ज्ञानाचार के लिये क्या करते उत्तर- स्वाध्याय का काल विचारते हैं, अनेक प्रकार की विनय मे प्रवृत्ति करते है, शास्त्र की भक्ति के लिए विनय का विस्तार करते है दुर्धर उपधान करते हैं-आरम्भ करते हैं। शास्त्रो का भले प्रकार से बहुमान करते हैं। गृह आदि मे उपकार प्रवृत्ति को नहीं भूलते, अर्थ-व्यजन और इन दोनो की शुद्धता मे सावधान रहते हैं। प्रश्न :-एषान्त व्यवहाराभासी चारित्राचार के लिये क्या करते उत्तर-हिंसा, झूठ, चोरी, स्त्री-सेवन और परिग्रह इन सबसे वितस्प पच-महानतो मे स्थिर वृत्ति धारण करते है, योग (मनवचन-काय) के निग्रहस्प गृप्तियो के अवलम्बन का उद्योग करते हैं, ई-भापा-ऐपणा-आदान निक्षेपण और उत्सर्ग इन पाँच समितियो मे सर्वथा प्रयत्नवन्त वर्तते है / 'प्रश्न 8~एकान्त व्यवहाराभासी तपाचार के लिये क्या करते हैं / उत्तर- अनशन, अवमोदर्य, वृत्तिपरिसस्यान, रसपरित्याग,
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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