________________ ( 262 ) सब निरर्थक हैं / वाह्य भेप लोक रजन का कारण है इसलिए यह उपदेश है इस महाव्रतादि से कुछ परमार्थ सिद्धि नहीं है / [मोक्षपाहुड गाथा 86-60] प्रश्न ३४५-जिसे जानने से मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति हो वैसा अवश्य जानने योग्य-प्रयोजनभूत क्या-क्या है? उत्तर-(१) हेय-उपादेय तत्त्वो की परीक्षा करना / (2) जीवादि द्रव्य, सात तत्त्व तथा सुदेव-गुरू-धर्म को पहिचानना / (3) त्यागने योग्य मिथ्यात्व-रागादिक तथा ग्रहण करने योग्य सम्यग्दर्शन-ज्ञानादिक का स्वरूप जानना। (4) निमित्त-नैमित्तिक आदि को जैसे हैं वैसा ही जानना / इत्यादि जिनके जानने से मोक्षमार्ग मे प्रवृत्ति हो उन्हें अवश्य जानना चाहिए; क्योकि वे प्रयोजनभूत तत्त्व है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 256] प्रश्न 346- सम्यक्त्द का अधिकारी कौन और कव हो सकता - उत्तर-देखो, तत्त्वविचार की महिमा / तत्त्व विचार रहित देवादिक की प्रतीति करे, बहत शास्त्रो का अभ्यास करे, व्रतादिक पाले, तपश्चरणादि करे, उसको सम्यक्त्व होने का अधिकार नही और तत्त्व विचार वाला इनके विना भी सम्यक्त्व का अधिकारी होता है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 260] प्रश्न ३४७-इस तरह भिन्न-भिन्न प्रकार समझाने से क्या लाभ है ? उत्तर-उन-उन प्रकारो को पहचान कर अपने मे ऐसा दोष हो तो उसे दूर करके सम्यक्त्रद्धानी होना, औरो के ही ऐसे दोष देख-देखकर कषायी नही होना, क्योकि अपना भला-बुरा तो अपने परिणामो से है / औरो को रुचिवान देखे तो कुछ उपदेश देकर उनको भी भला करे / इसलिए अपने परिणाम सुधारने का उपाय करना योग्य है, सर्व प्रकार के मिथ्यात्व भाव छोडकर सम्यग्दृष्टि होना योग्य है,