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________________ ( 260 ) अज्ञानी जीवो के अज्ञान को दूर करने के लिये समयसार कलश टीका फलश 100 से लेकर 112 तक से क्या-क्या बताया है ? ___ उत्तर-(१) किसी मिथ्यादृष्टि जीव का ऐसा अभिप्राय है जो दया, व्रत, तप-शील, सयम आदि * भले है, जीव को सुखकारी हैं / परन्तु जैसे अशुभ कर्म जीव को दुख करता है उसी प्रकार शुभ कर्म भी जीव को दुख करता है। कर्म मे तो भला कोई नही है। अपने मोह को लिए हुए मिथ्यादृष्टि जीव कर्म को भला करके मानता है। [समयसार कलश 100] (2) शुभ कर्म भला, अशुभ कर्म बुरा सो ऐसे दोनो जीव मिथ्यादृष्टि हैं, दोनो जीव कर्म बन्ध कारणशील है। कोई जीव गुभोपयोगी होता हुआ, यतिक्रिया मे मग्न होता हुआ शुद्धोपयोग को नहीं जानता है, केवल यतिक्रिया मात्र मे मग्न है। वह जीव ऐसा मानता है कि मैं तो मुनीश्वर, हमको विषय-कषाय सामग्री निषिद्ध है ऐसा जानकर विपय-कषाय सामग्री को छोडता है, आपको धन्यपना मानता है, मोक्षमार्ग मानता है / सो विचार करने पर ऐसा जीव मिथ्यादृष्टि है। [समयसार कलश 101] (3) शुभ कर्म के उदय मे उत्तम पर्याय होती है वहाँ धर्म की सामग्री मिलती है, उस धर्म की सामग्री से जीव मोक्ष जाता है इसलिए मोक्ष की परिपाटी शुभकर्म है। ऐसा कोई मिथ्यावादी मानता है। निश्चित हुआ कि कोई कर्म भला कोई कर्म बुरा ऐसा तो नही, सब ही कर्म दुखरूप है / कर्म निःसन्देह बन्ध को करता है, गणधर देव ने ऐसा [समयसार कलश 102] (4) कोई मिथ्यादष्टि जीव शुभ क्रिया को मोक्षमार्ग मानकर पक्ष करता है सो निषेध किया, ऐसा भाव स्थापित किया कि मोक्षमार्ग कोई कर्म नही। निश्चय से शुद्ध स्वरूप अनुभव मोक्षमार्ग है, अनादि-परम्परा ऐसा उपदेश है। समयसार कलश 103] (5) अशुभ क्रिया मोक्षमार्ग नही, शुभ क्रिया भी मोक्षमार्ग नही, कहा है।
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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