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________________ ( 256 ) नही होता है / (2) जैसे-- "कनस्तर मे तेल भरा हो तो तेल का कनस्तर कहा जाता है / परन्तु कनस्तर मे मिट्टी भरी हो तो तेल का * कनस्तर नही कहा जाता है, उसी प्रकार जिसको निश्चय प्रगटा हो उसी के भूमिकानुसार राग को मोक्षमार्ग का उपचार आता है परन्तु जिसमे (मिथ्यादृष्टियो मैं) मोह, राग, द्वेष भरा हो--उन पर मोक्षमार्ग का आरोप कसे आ सकता है, कभी भी नही आ सकता है। इसलिए व्यवहार तो उपचार का नाम है / सो उपचार भी तो तब बनता है जब सत्यभूत निश्चय रत्नत्रय के कारणादिक हो" इसलिए अनुपचार हुए विना उपचार का आरोप नहीं आता है। प्रश्न ३४२-निश्चयाभासी-व्यवहाराभासी और उभयाभासी के अज्ञान अन्धकार दूर करने मे कौन निमित्त हो सकता है ? उत्तर-(१) जो सम्यग्दृष्टि हो, विद्याभ्यास करने से शास्त्र वांचने योग्य बुद्धि प्रगट हुयी हो, सम्यग्ज्ञान द्वारा सर्व प्रकार के व्यवहार-निश्चयादिरूप व्याख्यान का अभिप्राय पहिचानता हो, जिसको शास्त्र वाचकर आजीविका आदि लौकिक कार्य साधने की इच्छा न हो, वह ही अज्ञानियो के अधकार मिटाने मे निमित्त हो सकता है / (2) भूले हुए को मार्ग कौन दिखा सकता है, जो स्वय उसका जानकार हो। जो स्वय अन्धा हो वह दूसरो को क्या मार्ग दिखायेगा ? नही दिखा सकता, उसी प्रकार मम्यग्ज्ञानी ही मोक्षमार्ग मे निमित्त हो सकता है। अज्ञानी कभी भी निमित्त नही हो सकता है क्योकि उपादान-निमित्त का ऐसा स्वभाव है। (3) नियमसार गाथा 53 मे कहा है कि 'जो मुमुक्ष हैं उनको भी उपचार से पदार्थ निर्णय के हेतुपने के कारण (सम्यक्त्व परिणाम का) अन्तरग हेतु कहा है क्योकि उनको दर्शनमोहनीय कर्म के क्षयादिक हैं। __ प्रश्न ३४३--शुभभाव करते-करते धर्म की प्राप्ति हो जावेगी; व्रत शोल-संयमादि व्यवहार मोक्षमार्ग और मोक्ष का कारण हैं, ऐसे
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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