________________ ( 256 ) प्रश्न ३३४-सम्यग्दृष्टि के शुभोपयोग पर परम्परा मोक्ष के कारण का आरोप क्यो आता है और मिश्यादष्टि के शुभोपयोग पर मोक्ष का आरोप क्यो नहीं आता है ? उत्तर-(१) शुभोपयोगरूप व्यवहार व्रत शुद्धोपयोग का हेतू है और शुद्धोपयोग मोक्ष का हेतू है ऐसा मानकर यहाँ उपचार से व्यवहार व्रत को मोक्ष का परम्परा हेतू कहा है। वास्तव मे तो शुभोपयोगी मुनि को मुनि योग्य शुद्ध परिणति ही (शुद्धात्य द्रव्य का अवलम्बन करती है इसलिए) विशेष शुद्धिरूप शुद्धोपयोग का हेतू होती है और वह शुद्धोपयोग मोक्ष फा हेतू होता है। इस प्रकार इस शुद्ध परिणति मे से हुये मोक्ष के परम्परा हेतूपने का आरोप उसके साथ रहने वाले शुभोपयोग मे करके व्यवहार व्रत को मोक्ष का परम्परा हेतु कहा जाता है। (2) मिथ्यादृष्टि के जहाँ शुद्ध परिणति ही न हो वहाँ वर्तते हुए शुभोपयोग मे मोक्ष के परम्परा हेतूपने का आरोप भी नहीं किया जा सकता, क्योकि जहाँ मोक्ष का यथार्थ परम्परा हेतु प्रगट ही नही हुआ है-विद्यमान ही नही है वहाँ शुभोपयोग मे आरोप किसका किया जावे ? मिथ्यादृष्टि के शुभभावो पर तो कभी मोक्ष का नारोप आता ही नहो, परन्तु सम्यग्दृष्टि नियम से शुभभाव का अभाव करके शुद्ध दशा मे आ ही जाता है इसलिए सम्यग्दृष्टि के शुभभावो पर परम्परा मोक्ष का आरोप आता है, मिथ्यादृष्टि के शुभभावो पर परम्परा मोक्ष का आरोप नही आता है-ऐसा जानना। प्रश्न ३३५-प्रवचनसार मे शुद्धता और शुभभान की मंत्री क्या कही है ? उत्तर-राग तो शुद्धता का शत्रु है परन्तु चरणानुयोग के शास्त्री मे ऐसा कथन करने की पद्धति है और व्यवहारनय का कथन है। प्रश्न ३३६-उभयाभासी अपने को निश्चय रत्नत्रय हुआ कैसे मानता है ?