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________________ ( 255 ) प्रश्न ३३१-उभयाभासी कहता है कि शुभोपयोग है सो शुद्धोपयोग का कारण है" क्या यह बात ठीक है ? उत्तर-ठीक नहीं है, जैसे-अशुभभाव कारण व शुभभाव कार्य और शुभभाव कारण व शुद्धभाव कार्य ऐसा बनता नहीं है / यदि ऐसा हो तो शुभोपयोग का कारण अशुभोपयोग ठहरे और द्रव्यलिंगी के शुभोपयोग तो उत्कृष्ट होता है, शुद्धोपयोग होता हो नही, इसलिए परमार्थ से इनके कारण-कार्यपना नही है। प्रश्न २३२-मिथ्यादृष्टि क्या करे तो शुद्धोपयोग की प्राप्ति हो और क्या करे तो परम्परा निगोद की प्राप्ति हो ? ___ उत्तर—जैसे- रोगी को बहुत रोग था, पश्चात् अल्प रोग रहा, तो वह अल्प रोग तो निरोग होने का कारण नहीं है। इतना है किअल्प रोग रहने पर निरोग होने का उपाय करे तो हो जाये, परन्तु यदि अल्प रोग को ही भला जानकर उसको रखने का यत्न करे तो निरोग कैसे हो , कभी ना होवे, उसी प्रकार कषायो के (मिथ्यादृष्टि के) तीव्र कपायरूप अशुभोपयोग था, पश्चात् मिथ्यादृष्टि के मन्दकषायरूप शुभोपयोग हुआ परन्तु मिथ्यादृष्टि का वह शुभोपयोग तो नि कपाय शुद्धोपयोग होने का कारण है नही; इतना है कि तत्त्व के अभ्यासरूप शुभोपयोग होने पर शुद्धोपयोग होने का यत्न करे तो हो जाये। परन्तु यदि शुभोपयोग को ही भला जानकर उसका साधन किया करे तो शुद्धोपयोग कैसे हो ? चारो गतियो मे घूमकर परम्परा निगोद की प्राप्ति हो। प्रश्न ३३३-शुभोपयोग को शुद्धोपयोग का कारण क्यो कहा जाता है ? उत्तर-सम्यकदृष्टि को शुभोपयोग होने पर निकट शुद्धोपयोग को प्राप्ति होती है-ऐसी ज्ञान को मुख्यता से चरणानुयोग मे शुभोपयोग को शुद्धोपयोग का कारण भी कहते हैं / परन्तु मिथ्यादृष्टि का शुभोपयोग तो शुद्धोपयोग का कारण है ही नही-ऐसा जानना।
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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