________________ ( 253 ) का साधन कर रहा हूँ, परन्तु जो मोक्ष का साधन है उसे जानते भी नही, केवल स्वर्गादिक का साधन करते है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 241] () बाह्य मे तो अणुव्रत-महाव्रतादि साधते है परन्तु अन्तरग परिणाम नही है और स्वर्गादिक की वाछा से साधते है-सो इस प्रकार साधने से पाप बन्ध होता है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 242] (10) इन्द्रिय जनित सुख की इच्छा के प्रयोजन हेतु अरहतादिक की भक्ति करने से भी तीन कषाय होने के कारण पाप बन्ध ही होता है-इसलिए पात्र जीवो को इस प्रयोजन का अर्थी होना योग्य नहीं है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 8] इस प्रकार ही चारो अनुयोगो ने बताया है। शुभभाव किसी का भी हो, वह बध का ही कारण है मोक्ष का कारण या मोक्षमार्ग नहीं है-ऐसा निश्चय करना। प्रश्न ३२७-जन शुभभाव किसी के भी हो वह मोक्षमार्ग और मोक्ष का कारण नहीं है तो कहीं-कहीं शास्त्रो में उन्हे मोक्षमार्ग और मोक्ष का कारण क्यो कहा है ? उत्तर-(१) वास्तव मे किसी भी शास्त्र मे शुभभावो को मोक्ष. मार्ग और मोक्ष का कारण नही कहा है ओर जहाँ कही कहा है उपचार मात्र व्यवहार कारण कहा है ऐसा जानना / (2) निचली दशा मे कितने ही जीवो के शुभोपयोग और शुद्धोपयोग का युक्तपना पाया जाता है, इसलिए उपचार से व्रतादिक शुद्धोपयोग को मोक्षमार्ग कहा है, वस्तु का विचार करने पर शुभोपयोग मोक्ष का घातक ही है, क्योकि बन्ध का कारण वह ही मोक्ष का घातक है-ऐसा श्रद्धान करना। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 255] (3) वीतराग भावो के और व्रतादिक के कदाचित् कार्य-कारण