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________________ ( 251 ) भी नही करना-यह जिन-जिनवर और जिनवर-वृषभो का आदेश हैं। प्रश्न ३२४-अशुद्धोपयोग (विकारी भाव) शुद्ध पर्याय (अविकारी भाव) के विषय मे जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो का क्या आदेश है ? उत्तर-(१) अशुद्धोपयोग (विकारी भाव) का त्याग और शुद्धोपयोग (अविकारी भाव) का ग्रहण करना अपना शुभोपयोग है, वह अपने आश्रित है, उसका आप कर्ता है, इसलिए शुभभावो मे कर्तृत्व बुद्धि भी मानना और ममत्व भी करना दोष का ज्ञान कराने की अपेक्षा कर्तृत्व बुद्धि कहा है, कर्त्तव्य नही कहा है। (2) परन्तु इस शुभोपयोग को वध काही कारण जानना, मोक्ष का कारण नहीं जानना, क्योकि बव और मोक्ष के तो प्रतिपक्षीपता है, इसलिए दोपरूप एक ही भाव पुण्य वध का भी कारण हो और मोक्ष का भी कारण हो-ऐसा मानना भ्रम है। (3) इसलिये व्रत-अव्रत दोनो विकल्परहित जहाँ पर द्रव्य के ग्रहण त्याग का कुछ भी प्रयोजन नही हैऐसा उदासीन वीतराग शुद्धोपयोग वही मोक्षमार्ग है-ऐसा जिनजिनवर और जिनवर-वृपभो का आदेश है। [ऐसा ही समयसार कलश 236 मे आया है, समाधितत्र गा० 47, त्याग-उपादान की १६वी शक्ति, मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 158 देखो] प्रश्न ३२५-व्रत-शील-सवमादिक शुभभानो को और शरीर की क्रियाओ को मोक्षमार्ग और मोक्ष का कारण कौन मानते हैं और उस का फल क्या है ? उत्तर-अज्ञानी मिथ्यादृष्टि मानते है और जिसका फल चारो गतियो मे घूमकर निगोद है। . प्रश्न ३२६–वत्त-शील-सयमादि शुभभाव ससार का कारण है, मोक्षमार्ग और मोक्ष का कारण नहीं है क्या ऐसा कहीं मोक्षमार्गप्रकाशक में आया है ? उत्तर-(१) व्रतादिरूप शुभोपयोगही से देवगति का बध मानते हैं
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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