________________ ( 248 ) तो कर्म बँधा, इसमे कर्म वधा नैमित्तिक, जीव ने विकार किया निमित्त / (इ) वाई ने रोटी बनाई-इसमे रोटी वनी नैमित्तिक वाई का राग निमित्त है। इस प्रकार ससारी के द्रव्यकर्म-नोकर्म का कार्यकारण सम्बन्ध है, परन्तु सिद्ध के साथ ऐसा कार्य-कारण सम्बन्ध भी नही है-ऐसा जानना। प्रश्न ३१५-संसारी के निश्चय से मतिनानादिक ही है-इसमें मतिज्ञानादिक के लिए निश्चय क्यो लगाया है ? उत्तर-'उभयाभासी ने कहा था कि 'पर्याय मे निश्चय से सिद्ध समान और पर्याय मे व्यवहार से मतिज्ञानादिक सहित हूँ उसकी बात झूठ है यह बताने के लिए मतिज्ञानादिक के लिए 'निश्चय' लगाया है। प्रश्न ३१६-'आत्मा तो जैसा है वैसा ही है'-इसका क्या अर्थ है ? उत्तर-(अ) निश्चय मे आत्मा त्रिकाली शुद्ध है, मात्मा मे सिद्ध और केवलज्ञानादिक की शक्ति है ।(आ) पर्याय से साधक ज्ञानियो को शुद्धि और अशुद्धिरूप मिश्र पर्याय है। (इ) मिथ्यादृष्टियो को पर्याय मे मात्र अशुद्धि ही है। (ई) सिद्ध को पर्याय मे सम्पूर्ण शुद्धता प्रगटी है। ज्ञानी श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र की अपेक्षा जैसा-जैसा है वैसा-वैसा मानता है, जानता है इसलिए 'आत्मा तो जैसा है वैसा ही है'कहा है। प्रश्न ३१७-कथन में झगड़ा क्यो पड़ता है ? __ उत्तर-(१) जहाँ श्रद्धा को अपेक्षा कथन हो, उसे ज्ञान या चारित्र की अपेक्षा समझने व मानने से झगडा पडता है। (2) जहाँ ज्ञान को अपेक्षा कथन हो उसे श्रद्धा या चारित्र की अपेक्षा समझने व मानने से झगडा पडता है। (3) जहाँ चारित्र की अपेक्षा कथन हो उसे श्रद्धा या ज्ञान की अपेक्षा समझने या मानने से झगडा पडता है। (4) जहाँ निमित्त की अपेक्षा कथन हो उसे उपादान की अपेक्षा मानने से झगडा पडता है। (5) जहाँ उपादान की अपेक्षा कथन हो,