________________ ( 247 ) ही व्यवहारनय से ससारी मतिज्ञानादि सहित तथा द्रव्यकर्म-नोकर्मभावकर्म सहित है—ऐसा मानता है। प्रश्न ३१२-क्या उभयाभासी का ऐसा निश्चय-व्यवहार मानना ठीक है? उत्तर-ठीक नहीं है, क्योकि एक आत्मा के एक ही समय मे ऐसे दो स्वरूप वर्तमान पर्याय मे हो ही नही सकते है / पर्याय में ही सिद्धपना और पर्याय मे ही ससारीपना, पर्याय मे ही केवलज्ञानादि और पर्याय मे ही मतिज्ञानादि एक आत्मा के एक साथ नही हो सकते हैं / जिस भाव का सहितपना उस भाव ही का रहितपना एक वस्तु मे केसे सम्भव हो ?-इसलिए उभयाभासी का ऐसा मानना भ्रम है। प्रश्न ३१३-उभयाभासी पूछता है कि सच्चा निश्चय-व्यवहार किस प्रकार है ? उत्तर-(१) सिद्ध और ससारी जीवत्वपने को अपेक्षा समान है। पर्याय अपेक्षा सिद्ध को पर्याय मे सिद्धपना प्रगट है और ससारी को पर्याय अपेक्षा ससार है / (2) ससारी की पर्याय मे निश्चय से मतिज्ञानादि है और सिद्ध की पर्याय मे निश्चय से केवलज्ञानादि है / परन्तु ससारी मे केवलजानादि की स्वभाव अपेक्षा शक्ति है / (3) द्रव्यकर्मनोकर्म पुद्गल से उत्पन्न हुए हैं, इसलिए निश्चय से ससारी के भी इनका भिन्नपना है, परन्तु सिद्ध की भांति इनका कार्य-कारण अपेक्षा सम्बन्ध भी न माने तो भ्रम भी है / (4) दोष अपना है, पर ने नही कराया है इसलिए भावकर्म निश्चय से आत्मा का कहा है / तथा सिद्ध की भॉति ससारी के भी रागादिक न मानना, उन्हे कर्म ही का मानना वह भी भ्रम है।। प्रश्न ३१४-द्रव्यफर्म-नोकर्म का संसारी के कारण कार्य अपेक्षा सम्बन्ध किस प्रकार है, सो समझाइये ? उत्तर-(अ) ससारी ने इच्छा की-हाथ उठा, इसमे हाथ उठा नैमित्तिक, जीव की इच्छा निमित्त है। (आ) जीव ने विकार किया