________________ ( 245 ) उत्तर--मात्र वीतरागता तो १२वें गुणस्थान मे है / व्रतादि रूप परिणति को मिटाकर १२वा गुणस्थान होना बने तो अच्छा है। वह निचली दशा मे (4-5-6 गुणस्थान तथा अबुद्धिपूर्वक राग १०वे तक) हो नहीं सकता। प्रश्न ३०६-उदासीन भाव का क्या अर्थ है ? उत्तर-वीतराग भाव रूप शुद्ध दशा का नाम उदासीन भाव है। (अ) उदासीन होकर निश्चल वृत्ति को धारण करते हैं / [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 3] (आ) सच्ची उदासीनता के अर्थ यथार्थ अनित्यत्वादिक का चिन्तन करना ही सच्ची अनुप्रेक्षा है, सकल कषाय रहित जो उदासीन भाव है उसी का नाम चारित्र है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 226] (इ) सच्ची उदासीनता तो उसका नाम है कि किसी द्रव्य का दोप या गुण भासित न हो स्व को स्व जाने, पर को पर जाने; पर मे कुछ भी मेरा प्रयोजन नहीं है ऐसा मानकर सक्षीभूत रहे / सो ऐसी उदासीनता ज्ञानी के ही होती है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 244] (ई) उदासीनता का अर्थ ज्ञाता-दृष्टामात्र, ज्ञान, भवनमात्र, सहज उदासीन कहा है। [समयसार कर्त्ता कर्म अधिकार] प्रश्न ३१०-शास्त्रो मे जहां शुभभाव झा निषेध किया हो और जहाँ शुभभाव को अच्छा कहा हो, वहाँ क्या जानना चाहिए ? उत्तर-(१) जहाँ शास्त्र मे शुभभाव का निपेध किया हो वहाँ शुद्ध मे जाने के लिए जानना चाहिए। जहाँ शुभभाव को अच्छा कहा हो वह अशुभ की अपेक्षा जानना तथा दोनो ही बध के कारण और दुख रूप है ऐसा जानना चाहिए / (2) आत्मानुभवनादि मे लगाने