________________ ( 243 ) स्वभाव को माने, पर्याय को न माने, (11) मात्र पर्याय को माने, त्रिकाली स्वभाव को न माने, (१२)शरीर की क्रिया मैं करता हूँ, यह हमारा कार्य है, (13) आस्रव-बध को सवर निर्जरा मान ले, (14) जीव को अजीव मान ले, (15) अजीव को जीव मान ले / वे जीव जिनवाणी सुनने के और गुरू की देशना के भी लायक नहीं हैं। प्रश्न ३०५-जो व्यवहार के कथन को ही सच्चा मानते हैं, उन्हें जिनवाणी में किन-किन नाम से सम्बोधित किया है ? उत्तर-(१) पुरुपार्थ सिद्धियुपाय मे कहा है कि 'तस्य देशना नास्ति / ' (2) समयसारनाटक मे कहा है 'मूर्ख / ' (३)आत्मावलोकन में कहा है 'यह उसका हरामजादीपना है।' (४)समयसार कलश 55 मे कहा है कि 'यह उनका अज्ञानमोह अधकार है उसका सुलटना दुनिवार है।' (5) प्रवचनसार मे कहा है कि वह पद-पद पर धोखा खाता है। (6) मोक्षमार्गप्रकाशक मे कहा है कि उसके सब धर्म के अग मिथ्यात्व भाव को प्राप्त होते हैं तथा मिथ्यादृष्टि कहा है। (7) समयसार गाथा 11 के भावार्थ मे कहा है कि उसका फल ससार है। (8) मोक्षमार्गप्रकाशक नौवे अधिकार मे कहा कि यह अनीति है / तातपर्य यह है कि चारो अनुयोगो मे व्यवहार के कथन को सच्चा कथन मानने वालो को चारो गतियो मे घूमकर निगोद में जाने वाला बतलाया है। क्योकि व्यवहार-निश्चय का प्रतिपादक है उसके बदले सच्चा मान लेता है / वह सम्यक्त्व से रहित पुरुषो का व्यवहार है / प्रश्न 306-(1) कोई निर्विचारी पुरुष कहे कि-तुम व्यवहार को असत्यार्थ-हेय कहते हो। (2) तो हम व्रत, शील, संयमादि व्यवहार किस लिए करें ? हम व्रत, शील, सयमादि को छोड़ देगे? उत्तर-(१) व्रत, शील सयमादि का नाम व्यवहार नही है। यह तो शुभ-भाव रूप प्रवृत्ति है और प्रवृत्ति मे व्यवहार का प्रयोजन ही नही है / परन्तु जिनको अपने स्वभाव के आश्रय से एक देश शुद्ध दशा प्रगट हुई है उस व्रत, शील, सयमादि मे मोक्षमार्ग का उपचार