________________ ( 242 ) अभूतार्थ वस्तु को ही भूतार्थ मान लेता है। (2) मोक्षशास्त्र मे 'गतिस्थित्युय-ग्रहीधर्माधर्मयो-रूपकारः' आया है-वहाँ मात्र इतना ही बताना है कि जब जीव-पुदगल स्वयं अपनी योग्यता से चलते है तो धर्मद्रव्य निमित्त होता है और जव स्वय अपनी योग्यता से ठहरते है तो अधर्म द्रव्य निमित्त होता है परन्तु जो व्यवहार कारण को ही निश्चय कारण मानकर धर्मद्रव्य जीव-पुद्गल को चलाता है और अधर्मद्रव्य जीव-पुद्गल को ठहराता है / (3) मोक्षशास्त्र मे "सुखदुख जीवित मरणोपग्रहारच" तथा "परस्परोपग्रहो जीवानाम्" सूत्र आये है यह सब निमित्तमात्र का कथन है किन्तु जो निमित्त के कथनो को ही सच्चा मान लेता है। (4) प्रवचनसार मे आया है कि ज्ञेय अपना स्वरूप ज्ञान को सौप देते है, ज्ञान उन्हे पकड लेता है यह सब उपचार कथन है परन्तु इसे ही सच्चा मान लेता है। (5) जीव ने कर्मो को बांधा आदि करणानुयोग का कथन निमित्त की अपेक्षा किया है परन्तु जो उस कथन को ही सच्चा मान लेता है-वह शिष्य उपदेश के योग्य नही है / इसलिए मुनिराज ऐसे शिष्य को उपदेश के योग्य नहीं समझते है। प्रश्न ३०४-किस-किस मान्यता वाले जीव जिनवाणी सुनने के और गुरू की देशना के लायक नहीं हैं-जरा सीधे-साधे शब्दो मे बताओ? उत्तर-(१) परमार्थ का ज्ञान कराने के लिए व्यवहार का कथन है उसके बदले व्यवहार के अवलम्बन से ही लाभ मान ले, (2) वचन गुप्ति रखना चाहिए ऐसा गुरु ने कहा, उसके बदले कहे, तुम क्यो वोलते हो, (3) प्रथम व्यवहार हो तो लाभ हो, (४)व्यवहार करतेकरते निश्चय प्रगट हो जावेगा, (5) भेद को अभेद मान ले, (६)देवगुरूशास्त्र के श्रद्धान को ही सम्यग्दर्शन मान ले, (७)बारह अणुव्रतादि को ही श्रावकपना मान ले, (8) 28 मूलगुणादि को ही मुनिपना मान ले, (9) निमित्त से ही उपादान मे कार्य होता है, (१०)मात्र त्रिकाली प्रथम व्यवहार (5) भेद ले, (७)वानिपना मान