________________ ( 237 ) व्यवहार मुनिपने का उपदेश देते है। व्यवहार मुनिपना है, उसका विषय भी है परन्तु 28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपना अगी-- कार करने योग्य नहीं है। प्रश्न 285-28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपने के बिना सकलचारित्र वीतरागभाव रूप निश्चय मुनिपने का उपदेश कैसे नहीं होता? उत्तर-निश्चय से सकलचारित्ररूप वीतरागभाव ही मुनिपना है। उसे जो नही पहिचानते, उनको ऐसे ही कहते रहे, तो वे समझ नही पाये / तब उनको सकलचारित्ररूप वीतराग भाव प्रगट हुआयह तत्त्व श्रद्धान-ज्ञान पूर्वक 28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपने के धर्म विरोधी कार्य मिटने की अपेक्षा द्वारा व्यवहारनय से 28 मूलगुणादिरूप प्रवृत्ति को सकलचारित्ररूप वीतराग भाव के विशेष बतलाये। तव उन्हे निश्चय वीतराग मुनिपने की पहचान हुई / इस प्रकार 28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपने के बिना' सकलचारित्र वीतरागभावरूप निश्चय मुनिपने के उपदेश का न होना जानना। प्रश्न 286-28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपने को कैसे अंगीकार नहीं करना चाहिए? उत्तर-(१) 28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपने के धर्म विरोधी कार्य मिटने की अपेक्षा द्वारा 28 मूलगुणादिरूप प्रवृत्ति को मुनिपना कहा, सो इन्ही को मुनिपना नही मान लेना। (2) क्योकि 28 मूलगुणादि रूप शरीर की क्रिया का ग्रहण-त्याग यदि आत्मा के हो तो आत्मा परद्रव्य का कर्ता-हर्ता हो जावे। परन्तु कोई द्रव्य किसी द्रव्य के आधीन नहीं है। (3) इसलिए आत्मा अपने भाव जो 28 मूलगुणादि की प्रवृत्तिरूप रागादि हैं, उन्हे छोडकर सकलचारित्र वीतराग भावरूप होता है / इसलिए निश्चय से सकलचारित्ररूप वीतराग भावरूप होता है / इसलिए निश्चय से सकलचारित्ररूप वीतराग भाव