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________________ ( 236 ) "सत्यार्थ ऐसे ही है-ऐसा जानना तथा कही 28 मूलगुणादि की प्रवृत्ति मुनिपना है-ऐसा व्यवहारनय की मुख्यता लिये व्याख्यान है उसे "ऐसे है नही, निमित्तादि की अपेक्षा उपचार किया है"-ऐसा जानना / 28 मूलगुणादि की प्रवृत्ति मुनिपना नही है, सकलचारित्र रूप वीतराग भाव ही मुनिपना है-इस प्रकार जानने का नाम ही निश्चय-व्यवहार दोनो मुनिपना का ग्रहण है। प्रश्न २८३-कुछ मनीषी ऐसा कहते हैं कि 28 मूलगुणादि की प्रवृत्ति भी मुनिपना है और सकलचारिकरूप वीतराग भाव भी मुनिपना है-इस प्रकार निश्चय-व्यवहार दोनो मुनिपनो का ग्रहण करना चाहिए। क्या उन महानुभावो का ऐसा कहना गलत है ? उत्तर-हाँ, बिल्कुल गलत है। क्योकि उन महानुभावो को जिनेन्द्र भगवान को आज्ञा का पता नही है तथा निश्चय-व्यवहार दोनो मुनिपनो के व्याख्यान को समान सत्यार्थ जानकर "28 मूलगुणादि की प्रवृत्ति भी मुनिपना है और सकलचारित्ररूप वीतराग भाव भी मुनिपना है"- इस प्रकार भ्रमरूप प्रवर्तन से तो दोनो नयो का ग्रहण करना जिनवाणी मे नही कहा है। प्रश्न 284-28 मूलगुणादि की प्रवृत्ति रूप व्यवहार मुनिपना असत्यार्थ है तो उसका उपदेश जिनमार्ग में किसलिए दिया? सकलचारित्ररूप वीतराग भाव ही मुनिपना है-एकमात्र ऐसे निश्चय मुनिपने का ही निरूपण करना था ? उत्तर-ऐसा ही तर्क समयसार मे किया है। वहाँ उत्तर दिया है 'कि-जिस प्रकार म्लेच्छ को म्लेच्छ भापा विना अर्थ ग्रहण कराने मे कोई समर्थ नही है, उसी प्रकार 28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप व्यवहार -मुनिपने के बिना, सकलचारित्र रूप वीतराग भावरूप निश्चय मुनिपने का उपदेश अशक्य है। इसलिए 28 मूलगुणादि प्रवृत्ति रूप व्यवहार मुनिपने का उपदेश है। इस प्रकार सकलचारित्र वीतराग भावरूप निश्चय मुनिपने का ज्ञान कराने के लिए 28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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