________________ उत्तर-व्यवहारमय के भाव, 281 निश्चय मुनिना किसी में ( 235 ) आत्मकार्य मे जागता है। तथा जो 28 मूलगुणादि की प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपने में जागता है वह अपने आत्मकार्य मे सोता है। इसलिये 28 मूलगुणादि की प्रवृत्तिरुप व्यवहार मुनिपने को श्रद्धा छोड़कर सकलचारित्र वीतरागभावरूप निश्चय मुनिपने का श्रद्धान करना योग्य है। प्रश्न 281-28 मूलगुणादि की प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपने की श्रद्धा छोड़कर सकलचारित्र वीतरागभावरूप निश्चय मुनिपने का श्रद्धान करना क्यो योग्य है ? / उत्तर-व्यवहारनय सकलचारित्र वीतरागभाव रूप निश्चय मुनिपना- यह स्वद्रव्य के भाव, 28 मूलगुणादि की प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपना-यह परद्रव्य के भाव है। निश्चय मुनिपना स्वद्रव्य के भावो, 28 मूलगुणादि परद्रव्य के भावो को किसी को किसी मे मिलाकर निरूपण करता है / 28 मूलगुणादि की प्रवृत्ति ही मुनिपना है-सो ऐसे ही श्रद्धान से मिथ्यात्व होता है इसलिए उसका त्याग करना और निश्चयनय=निश्चय मुनिपना स्वद्रव्य के भावो को, 28 मूलगुणादि की प्रवृत्तिरूप परद्रव्य के भावो को यथावत् निरूपण करता है तथा किसी को किसी मे नही मिलाता है। सकलचारित्ररूप वीतराग ही मुनिपना है-सो ऐसे ही श्रद्धान से सम्यक्त्व होता है-इस लिए श्रद्धान करना चाहिए। प्रश्न २८२-आप कहते हो कि 28 मूलगुणादि रूप व्यवहार मुनिपने के श्रद्धान से मिथ्यात्व होता है इसलिए उसका त्याग करना और सकलचारित्रस्प वीतराग भाव निश्चय मुनिपने के श्रद्धान से सम्यक्त्व होता है इसलिए उसका श्रद्धान करना। परन्तु जिनमार्ग में निश्चय-व्यवहार दोनो मुनिपनो का ग्रहण करना कहा है, उसका क्या, कारण है ? उत्तर-जिनमार्ग मे कही तो सकलचारित्ररूप बीतराग भाव ही मुनिपना है-ऐसा निश्चयनय की मुख्यता लिये व्याख्यान है उसे तो