________________ (234 ) उसे तो सत्यार्थ मानकर उसका श्रद्वान संगीकार करना और 28 मूलगुणादि की प्रवृत्ति मुनिपना है-ऐसे व्यवहारनय से जो निरूपण किया हो उसे असत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान छोडना। प्रश्न 279-28 मूलगुणादि की प्रवृत्ति मुनिपना है-ऐसे व्यवहार मुनिपने का त्याग करने का, तीन चौकडी कपाय के अभावस्प सकलचारित्ररूप दोतरागभाव मुनिपना है-ऐसे निश्चय मनिपने को अंगीफार करने का आदेश कीं भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने दिया है ? उत्तर-समयनार कलग 173 मे आदेश दिया है कि मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिंगी की ऐसी मान्यता है कि निचय से सकलचारित्र वीतरागमावर निश्चय मुनिपने की श्रद्धा रखता ह और व्यवहार से 28 मूलगुणादि की प्रवृत्ति ऐसे व्यवहार मुनिपने की प्रवृत्ति रखता हूयह उसका मिय्या-अध्यवसाय है और ऐसे-ऐसे समस्त अध्यवसानो की छोडना क्योकि मिथ्यादृष्टियो को निश्चय-व्यवहार कुछ होता ही नही है-ऐमा अनादि से जिनेन्द्र भगवानो की दिव्यध्वनि मे आया है। तथा स्वय अमृतचन्द्राचार्य कहते है कि मैं ऐसा मानता हूँ कि ज्ञानियो को जो 28 मूलगुणादि प्रवृत्ति-ऐसा जो पराधित व्यवहार मुनिपना होता है--सो सर्व ही छुडाया है / तो फिर सन्त पुरुप / एक परम त्रिकाली ज्ञायक निश्चय के आश्रय से सकलचारित्र वीतरागभावरूप मुनिपने को अगीकार करके शुद्ध ज्ञानघनरूप निज महिमा मे स्थिति करके केवलज्ञान क्यो प्रगट नहीं करते। ऐसा कहकर आचार्य भगवान ने खेद प्रगट किया है। प्रश्न २८०-सकलचारित्र वीतरागभावरूप निश्चय सुनिपने को अंगीकार करने और 28 मूलगुणादि की प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपन्ने के त्याग के विषय में भगवान कुन्दकुन्दाचार्य ने क्या कहा है ? उत्तर--मोक्षप्राभृत गाथा 31 मे कहा है कि "जो 28 मूलगुणादि की प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपने की श्रद्धा छोडकर सकलचारित्र वीतरागभावरूप निश्चय मुनिपने की श्रद्धा रखता है वह योगी अपने