SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - - -- H A ( 233 ) 12 अणुव्रतादि शुभभावरूप श्रावकपना नहीं है-ऐसा ही श्रद्धान करना / इस प्रकार व्यवहारनय को अगोकार नहीं करना-ऐसा जान लेना। प्रश्न २७७-जो अणुव्रतादिक विकल्प नरवहार श्राव रुपने को ही सच्चा आवकपना मानता है उसे शास्त्रो में किस-किस नामो से सम्बोधित किया है ? उत्तर-जो व्यवहार श्रावकपने को हो श्रावकपना मानता है उसे (1) पुरुषार्थ सिद्धियुपाय मे 'तस्य देशना नास्ति' कहा है / (२)नाटक समयसार मे 'मूर्ख' कहा है / (3) आत्मावलोकन मे 'हरामजादीपना' कहा है / (4) समयसार कलश 55 मे कहा है कि 'यह उसका अज्ञान मोह अधकार है और उसका सुलटना दुनिवार है।' (5) प्रवचनसार गाथा 55 मे कहा है 'वह पद-पद पर धोखा खाता है। (6) समयसाय मे 'उसका फल ससार ही है। ऐसा कहा है। वह क्रम से चारो गतियों मे घूमता हुआ निगोद मे चला जाता है। (15) 'उभयाभासों की मान्यता अनुसार निश्चय से सकलचारित्र रूप मुनिपने का श्रद्धान रखता है और 28 मूलगुणादिरूप व्यवहार मुनिपने की प्रवृत्ति रखता है। इस वाक्य पर निश्चय व्यवहार मुनिपने का दस प्रश्नोत्तरी द्वारा स्पष्टीकरण' प्रश्न २७८-सकलचारित्र वीतरागभाव मुनिपना है ऐसे निश्चय मुनिपने का तो श्रद्धान रखता हूं और 28 मूलगुणादि को प्रवृत्ति मुनिपना है ऐसे व्यवहार मुनिपने की प्रवृत्ति रखता हूं। परन्तु आपने हमारी मान्यता अनुसार निश्चय-व्यवहार मुनिपने को झूठा बता दिया। तो हम निश्चय-व्यवहार को किस प्रकार समझे तो हमारा माना हुआ निश्चय-व्यवहार मुनिपना सत्यार्थ कहलावे ? उत्तर-तीन चौकडी कषाय के अभावरूप सकलचारित्र रूप वीतरागभाव मुनिपना है-ऐसे निश्चयनय से जो निरूपण किया हो
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy