________________ ( 232 ) उत्तर-व्यवहार श्रावकपने के बिना परमार्थ श्रावकपने का उपदेश अशक्य है, इसलिये व्यवहार श्रावकपने का उपदेश है। निश्चय श्रावकपने को अगीकार कराने के लिए व्यवहार श्रावकपने द्वारा उपदेश देते हैं, परन्तु व्यवहार श्रावकपना है, उसका विषय भी है, जानने योग्य है सो अगीकार करने योग्य नही है। प्रश्न २७५-व्यवहार श्रावकपने बिना निश्चय धावकपने का उपदेश कैसे नहीं होता? उत्तर-निश्चय से वीतराग देशचारित्र श्रावकपना है, उसे जो नही पहचानते उनको ऐसे ही कहते रहे तो वे समझ नहीं पाये / तब उनको तत्त्व श्रद्धान-ज्ञान पूर्वक, पर-द्रव्य के निमित्त भिटाने की सापेक्षता द्वारा, व्यवहारनय से 12 अणुव्रतादि श्रावकपने को निश्चय श्रावकपने का विशेष बताया तब उन्हे निश्चय श्रावकपने की पहचान हुई। इस प्रकार व्यवहार श्रावकपने के बिना निश्चय श्रावकपने के उपदेश का न होना जानना / प्रश्न २७६-बारह अणुव्रतादि विकल्परूप व्यवहार श्रावकपने को कैसे अंगीकार नहीं करना चाहिए ? उत्तर-(१) परद्रव्य का निमित्त मिटने की अपेक्षा से बारह अणुव्रतादि को श्रावकपना कहा, सो इन्ही को श्रावकपना नही मान लेना। (2) क्योकि बारह अणव्रतादि का ग्रहण-त्याग आत्मा के हो तो आत्मा पर द्रव्य का (बारह अणव्रतादिरूप शरीर की क्रिया का) कर्ता हर्ता हो जाये; परन्तु कोई द्रव्य किसी द्रव्य के आधीन है ही नही। (3) इसलिए आत्मा अपने भाव जो बारह अणुव्रतादि शुभभाव रूप श्रावकपना है, उन्हे छोडकर निश्चय देशचारित्ररूप श्राव कपना होता है, इसलिये निश्चय से वीतराग देशचारित्ररूप ही श्रावकपना है। (4) वीतराग देशचारित्ररूप श्रावकपने के और शुभभावरूप श्रावकपने के कदाचित् कार्य-कारणपना है। (5) इसलिये वारह अणुव्रतादि शुभभावो को श्रावकपना कहे सो कथन मात्र ही है। (6) परमार्थ से