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________________ ( 231 ) तथा निश्चयनय स्वद्रव्य के भावो को (वीतरागरूप देशचारित्ररूप श्रावकपने को) परद्रव्य के भावो को (12 अणुव्रतादि विकल्परूप श्रावकपने को किसी को किसी में मिलाकर निरूपण नही करता है, यथावत् निरूपण करता है, सो ऐसे ही श्रद्धान से सम्यक्त्व होता है इसलिए उसका श्रद्वान करना। प्रश्न २७२-आप कहते हो कि 12 अणुव्रतादिरूप व्यवहार श्रावक पने के श्रद्धान से मिथ्यात्व होता है इसलिए उसका त्याग करो और वीतराग देशचारित्ररूप निश्चय श्रावकपने के श्रद्धान से सम्यक्त्व होता है इसलिये उसका श्रद्धान करो। परन्तु जिनमार्ग मे दोनो प्रकार के श्रावकपने का ग्रहण करना कहा है, सो कैसे ? उत्तर-वीतराग देशचारित्ररूप श्रावकपना-जिनमार्ग मे ऐसा निश्चयनय की मुख्यता लिए व्याख्यान है उसे तो 'सत्यार्थ ऐसे ही है'ऐसा जानना / तथा 12 अणुव्रतादि विकल्प रूप श्रावकपना है—ऐसा व्यवहारनय की मुख्यता लिए व्याख्यान है उसे 'ऐसे है नही, निमित्तादि की अपेक्षा उपचार किया है' ऐसा जानना। (वीतराग देशचारित्ररूप श्रावकपना है और 12 अणुव्रतादि श्रावकपना नही है) इस प्रकार जानने का नाम ही निश्चय श्रावकपने और व्यवहार श्रावकपने का ग्रहण है। प्रश्न २७३-कोई-कोई विद्वान 'वीतराग देशचारित्ररूप श्रावकपना भी है और बारह अणुव्रतादि विकल्परूप श्रावकपना भी हैं ऐसा कहते हैं-क्या ऐसा मानने वाले झूठे हैं ? उत्तर--झूठे ही है, क्योकि दोनो श्रावकपने के व्याख्यान को समान सत्यार्थ जानकर ‘ऐसे भी है, ऐसे भी है'-इस प्रकार भ्रमरूप प्रवर्तन से तो निश्चय-व्यवहार श्रावकपने का ग्रहण करना नही कहा है। प्रश्न २७४–यदि व्यवहार श्रावकपना असत्यार्थ है, तो व्यवहार थावकपने का उपदेश जिनमार्ग में किसलिये दिया ? एफ वीतरागरूप निश्चय श्रावकपने का ही निरूपण करना था ?
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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