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________________ ( 230 ) (14) निश्चय-व्यवहार मोक्षमार्ग का नो बोलो द्वारा स्पष्टीकरण प्रश्न २६६-'बारह अणुव्रतादि श्रावकपना है-इस वाक्य में निश्चय-व्यवहार का स्पष्टीकरण करो ? उत्तर-बारह अणुव्रतादि श्रावकपना है-ऐसा व्यवहारनय से जो निरुपण किया हो उसे असत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान छोडना और जहाँ देशचारित्ररूप श्रावकपना है--ऐसा निश्चयनय से जो निरूपण किया हो उसे सत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान अगीकार करना, क्योकि भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने समयसार कलश 173 मे कहा है कि जितना भी पराश्रित व्यवहार है वह सर्व जिनेन्द्र देवो ने छुडाया है और निश्चय को प्रगट करके निज महिमा मे प्रवर्तन का आदेश दिया है। प्रश्न २७०-निश्चय-व्यवहार श्रावकपने के विषय मे मोक्षपाहुड़ गाथा 31 में क्या बताया है ? उत्तर-जो बारह अणुव्रतादि श्रावकपने की श्रद्धा छोडकर देशचारित्र शुद्धिरूप श्रावकपनेरूप अपने स्वभाव मे रमता है वह योगी अपने कार्य मे जागता है तथा जो बारह अणुव्रतादि श्रावकपने से लाभ मानता है वह अपने कार्य मे सोता है / इसलिये बारह अणुव्रतादिरूप श्रावकपने का श्रद्धान छोडकर निश्चयनयरूप श्रावकपने का श्रद्धान कारना योग्य है। प्रश्न २७१-बारह अणुनतादि व्यवहाररूप श्रावकपने की श्रद्धा छोड़कर निश्चयनय देशचारित्र रूप श्रावकपने का श्रद्धान करना क्यो योग्य है? उत्तर-व्यवहारनय स्वद्रव्य के भावो को (वीतराग देशचारित्र श्रावकपने को) परद्रव्य के भावो को (12 अणव्रतादि विकल्परूप श्रावकपने को) किसी को किसी मे मिलाकर निरूपण करता है सो ऐसे ही श्रद्धान से मिथ्यात्व होता है, इसलिए उसका त्याग करना
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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