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________________ ( 238 ) ही मुनिपना है। (4) सकलचारित्ररूप वीतराग भावो के और 28 मूलगुणादि रुप प्रवृत्ति के साधक जीव के सविकल्प दशा में कार्यकारणपना है / इसलिए 28 मूलगुणादिरूप प्रवृत्ति को मुनिपना कहा -~-सो कथन मात्र ही है / परमार्थ से 28 मूलगुणादि रूप वाह्य क्रिया मुनिपना नहीं है-ऐसा ही श्रद्धान करना / इस प्रकार 28 मूलगुणा'दिरूप प्रवृत्ति (व्यवहार मुनिपना) अगीकार करने योग्य नही हैऐसा जानना। प्रश्न 287-28 मूलगुणादित्य प्रवृत्ति अर्थात् व्यवहार मुनिपने के कयन को ही जो सच्चा मानता है उसे जिनवाणी मे किस-किस नाम से सम्बोधित किया है ? उत्तर--(१) 28 मूलगुगादि प्रवृत्तिल्प व्यवहार मुनिपने के कथन को ही जो सच्चा मान लेता है उसे पुरुषार्थ सिद्धियुपाय श्लोक 6 मे कहा है कि 'तस्य देशना नास्ति।' (2) 28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपने के कथन को ही जो सच्चा मान लेता है उसे समयसा कलश 55 मे कहा है कि 'यह उसका अज्ञान मोह अधकार है, उसका सुलटना दुनिवार है।' (3) 28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपने के कथन को ही जो सच्चा मुनिपना मान लेता है उसे प्रवचनसार गाथा 55 मे कहा है कि, 'वह पद-पद पर धोखा खाता है / ' (4) 28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपने के कथन को ही जो सच्चा मुनिपना मान लेता है उसे आत्मावलोकन मे कहा है कि 'यह उसका हरामजादीपना है।' प्रश्न-२८-'चार हाथ जमीन देखकर चलने का भाव ईर्यासमिति है'-इस वाक्य मे निश्चय व्यवहार का स्पष्टीकरण करो? उत्तर-प्रश्न 278 से 287 तक के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न २८६-'देव-गुरू-शास्त्र का श्रद्धान सम्यग्दर्शन है इस वाक्य सें निश्चय-व्यवहार का स्पष्टीकरण करो ? उत्तर–प्रश्न 278 से 287 तक के अनुसार उत्तर दो /
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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