________________ ( 228 ) रूप निश्चय मुनिपने का 28 मूलगुण रूप व्यवहार मुनिपने मे उपचार किया है; 28 मूलगुणरूप व्यवहार मुनिपने का वाहरी शरीरादि की क्रिया में उपचार का उपचार किया तो उसे मुनि कहा / (3) यहाँ ऐसा जानना-बाहरी क्रिया तो सर्वथा पुद्गल की ही है उससे मुनिपने का सम्बन्ध ही नही है। (4) परन्तु भूमिकानुसार 28 मूलगुणादि व्यवहार मुनिपना कहा-वह भी कहने मात्र का मुनिपना है वास्तव मे मुनिपना नही है / मुनिपना तो सकलचारित्र शुद्धोपयोगरूप ही है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 273] प्रश्न २६६-बारह अणुव्रतादिकल्प शरीर की क्रियाओ से श्रावकपने की पहिचान क्यो कराई ? उत्तर-(प्रश्न 265 के अनुसार उत्तर दो।) प्रश्न २६७-सच्चे देव-गुरू-शास्त्र की बाहरी भक्ति देखकर सम्य दृष्टि की पहिचान प्यो फराई ? उत्तर-(प्रश्न 265 के अनुसार उत्तर दो।) प्रश्न २६८-निश्चय-व्यवहार मोक्षमार्ग के सम्बन्ध मे जिनवाणी ने क्या-क्या बताया है ? उत्तर-(१) महावदादि होने पर वीतराग चारित्र होता हैऐसा सम्वन्ध जानकर महाव्रतादि मे चारित्र का उपचार किया है, निश्चय से नि कषाय भाव है वही सच्चा चारित्र है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 230] (2) मोक्षमार्ग दो नही है, मोक्षमार्ग का निरूपण दो प्रकार है / जहाँ सच्चे मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग का निरूपित किया जाये सो निश्चय मोक्षमार्ग है और जो मोक्षमार्ग तो है नही परन्तु मोक्षमार्ग का निमित्त है वह सहचारी है-उसे उपचार से मोक्षमार्ग कहा जावे सो व्यवहार मोक्षमार्ग है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 248] (3) व्रत-तप आदि मोक्षमार्ग है नही, निमित्त की अपेक्षा उपचार से बतादि को मोक्षमार्ग कहते हैं। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ 250