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( २२७ ) मात्र हो है। परमार्थ से बाह्य क्रिया मोक्षमार्ग नहीं है-ऐसा ही श्रद्धान करना।" इस वाक्य को मुनिदशा में लगाकर बताओ?
उत्तर-सकलचारित्र रूप मुनिदशा नैमित्तिक तथा २८ मूलगुणादि का विकल्प निमित्त है । २८ मूलगुणादि को मुनिपना कहा सो कथन मात्र ही है। परमार्थ से २८ मूलगुणादिपना मुनिपना नहीं है-ऐसा ही श्रद्धान करना।
प्रश्न २६३–'वीतराग भावो के और व्रतादिक के कदाचित् कार्य-कारणपना है, इसलिए व्रतादिक को मोक्षमार्ग कहा सो कथन मात्र ही है; परमार्थ से बाह्य क्रिया मोक्षमार्ग नहीं है"-ऐसा ही श्रद्धान करना-इस वाक्य को श्रावकपना और सम्यकर्दष्टिपने पर लगाकर बताओ?
उत्तर-(इन दोनो प्रश्नों का उत्तर प्रश्न न० २६२ के अनुसार दो।)
प्रश्न २६४-वीतराग भावो के और व्रतादिक के कदाचित् कार्यकारणपना है, इसमें 'कदाचित्' शब्द क्या सूचित करता है ?
उत्तर-४-५-६ वे गुणस्थान मे 'कदाचित' शब्द सविकल्प दशा मे लागू पडता है । केवलज्ञानी को, अज्ञानी को तथा निर्विकल्प दशा मे साधक को 'कदाचित्' शब्द लागू नही पड़ता है।
प्रश्न २६५-नग्नपने आदि शरीर की क्रियाओ से मुनिपने की पहचान क्यो कराई है, जबकि बाहरी क्रिया मुनिपना नहीं है ?
उत्तर-आत्मा अरूपी, आत्मा के गुण अरूपि और आत्मा की सकलचारित्ररूप मुनिपना शुद्ध पर्याय अरूपी और २८ मूलगुणरूप व्यवहार मुनिपना अशुद्ध पर्याय भी अरूपी है । अब उसका ज्ञान कैसे कराया जावे--(१) तव वहाँ निश्चय की मुख्यता रखकर धर्म विरोधी कार्यो का अभाव होने से जो नग्न हो, पीछी-कमण्डल के अलावा कुछ न रखता हो, जगल मे रहता हो, उद्दिष्ट आहार ना लेता हो-वह मुनि है । (२) यहाँ पर ऐसा समझना कि वीतरागरूप सकलधारित्र