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________________ ( २२६ ) उत्तर--(१) बारह अणुव्रतादि का राग नैमित्तिक है; चारित्र मोहनीय द्रव्यकर्म का उदय निमित्त है तथा (२) बारह अणुव्रतादि रूप शरीर की क्रिया नैमित्तिक है, तो बारह अणुव्रतादि का भाव निमित्त है। प्रश्न २५६-छठे गुणस्थान की मिश्रदशा में निमित्त नैमित्तिक क्या है ? उत्तर-सकलचारित्ररूप शुद्धि नैमित्तिक है; २८ मूलगुणादि का विकल्प निमित्त है। प्रश्न २६०-(१) छठे गुणस्थान मे अशुद्धि अंश का किसके साथ तथा (२) २८ मूलगुणादिरूप शरीर की क्रिया का किसका किसके साथ निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है ? उत्तर-(१) मूलगुणादि का विकल्प नैमित्तिक है, चारित्र-मोहनीय द्रव्यकर्म का उदय निमित्त है तथा (२) २८ मूलगुणादि रूप शरीर की क्रिया नैमित्तिक है, तो भावलिंगी मुनि का २८ मूलगुणादि भाव तिमित्त है। प्रश्न २६१-प्रश्न २५५ से २६० तक निमित्त-नैमित्तिक बनाने के पीछे क्या रहस्य है ? उत्तर-(१) शरीर-मन-वाणी द्रव्यकर्म की क्रिया का कर्ता सर्वथा पुद्गल द्रव्य ही है । आत्मा का पुद्गल की क्रिया से सर्वथा सम्बन्ध नहीं है । (२) अपने ज्ञायक स्वभाव का आश्रय लेकर जो शुद्धि प्रगटी वह ही मोक्षमार्ग है । (३) ज्ञानियो को जो भूमिकानुसार अस्थिरता का राग होता है, उसे बध का कारण दुखरूप जानते है । (४) अस्थिरता का भाव =भाव्य और द्रव्यकर्म का उदय भावक है । ज्ञानी उसका तिरस्कार करके अपने मे एकाग्र होकर परिपूर्ण दशा की प्राप्ति-यह निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध जानने का फल है। प्रश्न २६२-"वीतराग भावो के और व्रतादिक के कदाचित् कार्य-कारणपना है, इसलिए वतादिक को मोक्षमार्ग कहा सो कथन
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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