SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २२४ ) सापेक्षता द्वारा" कहा है। (३) व्यवहारनय से २८ महाव्रतादि रूप शुभभावो को मुनिपना कहा-इस प्रकार जानना। प्रश्न २५०--"तत्त्व श्रद्धान-ज्ञान पूर्वक" किसको लागू पड़ता है और किसको नहीं ? उत्तर-चौथे गुणस्थान से ज्ञानियो को ही लागू पडता है । द्रव्यलिंगी मुनि-श्रावको को लागू नही पड़ता है। प्रश्न २५१-"परद्रव्य के निमित्त मिटने की सापेक्षता द्वारा" से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-भूमिकानुसार अस्थिरता सम्बन्धी शुभभावो के विरुद्ध धर्म विरोधी कार्यों का अभाव होने की अपेक्षा ज्ञानियो को लागू पडता है, यह तात्पर्य है। प्रश्न २५२-किस जीव के व्रत-शीलादि को व्यवहारनय से मोक्षमार्ग कहा ? उत्तर-जिसको अनुपचार हुआ है ऐसे ज्ञानियो के व्रत-शीलादि को मोक्षमार्ग कहा है। द्रयलिंगी आदि के व्रत-शीलादि को नही कहा है । प्रश्न २५३-व्यवहारनय से व्रत-शीलादि को मोक्षमार्ग कहा, तब व्यवहारनय को कैसे अंगीकार नहीं करना चाहिए ? सो कहिये । उत्तर-(१) परद्रव्य का निमित्त मिटने की अपेक्षा से व्रत-शीलसयमादिक को मोक्षमार्ग कहा सो इन्ही को मोक्षमार्ग नही मान लेना। (२) क्योकि परद्रव्य का ग्रहण-त्याग आत्मा के हो तो आत्मा परद्रव्य का कर्ता-हर्ता हो जाये; परन्तु कोई द्रव्य किसी द्रव्य के आधीन है नही। (३) इसलिए आत्मा अपने भाव रागादिक हैं, उन्हे छोडकर वीतरागी होता है, इसलिए निश्चय से वीतराग भाव ही मोक्षमार्ग है । (४) वीतराग भावो के और व्रतादिक के कदाचित् कार्य-कारणपना है।(५) इसलिए व्रतादि को मोक्षमार्ग कहे सो कथन मात्र ही है।
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy