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( २२३ ) निमित्त मिटने की सापेक्षता द्वारा (३) व्यवहारनय से व्रत-शीलादि को मोक्षमार्ग का" इस वाक्य को चौथे गुणस्थान मे लगाकर बताओ?
उत्तर-(१) चौथे गुणस्थान मे निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान स्वरूपाचरण-चारित्र की प्राप्ति हुई है उसके लिये “तत्त्व-श्रद्धानज्ञान पूर्वक" कहा है। (२) कुदेव-कुगुरु और कुशास्त्र को न मानने तथा मद्य-मास-मधु न खाते हुए की अपेक्षा "परद्रव्य के निमित्त मिटने की सापेक्षता द्वारा" कहा है। (३) व्यवहारनय से सच्चे देवादि तथा सात तत्त्वो की भेदरूप श्रद्धा को सम्यग्दर्शन कहा-इस प्रकार जानना।
प्रश्न २४८-(१) तत्त्व श्रद्धान-ज्ञान पूर्वक (२) परद्रव्य के निमित्त मिटाने की सापेक्षता द्वारा (३) व्यवहारनय से व्रत-शीलादि को मोक्षमार्ग कहा"-इस वाक्य को छठे गुणस्थान मे लगाकर बताओ?
उत्तर-(१) पाँचवे गुणस्थान मे देशचारित्र शुद्धि प्रगटी हैउसके लिए 'तत्त्व श्रद्धान-ज्ञान पूर्वक' कहा है । (२) बारह अणुव्रतादि की विरुद्धता ना होने की अपेक्षा-"परद्रव्य के निमित्त मिटने की सापेक्षता द्वारा" कहा है । (३) व्यवहारनय से बारह अणुव्रतादि को श्रावकपना कहा-इस प्रकार जानना ।
प्रश्न २४६-(१) "तत्त्व श्रद्धान-ज्ञान पूर्वक (२) परद्रव्य के निमित्त सिटने की सापेक्षता द्वारा (३) व्यवहारनय से महाव्रतादि को मोक्षमार्ग कहा"-इस वाक्य को छठे गुण स्थान मे लगाकर बताओ?
उत्तर-(१) छठे गुणस्थान मे सकलचारित्र शुद्धि प्रगटी हैउसके लिए "तत्त्व श्रद्धान-ज्ञान पूर्वक" कहा है । (२) पीछी-कमडल के अलावा कुछ ना होने की, घरो मे ना रहने की, किया कराया अनुमोदित भोजन ना लेने की अपेक्षा-"परद्रव्य के निमित मिटने की