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( २२२ ) प्रश्न २४३-श्रद्धा वाला जीव है-इस वाश्य पर अभेद-भेद 'निश्चय-व्यवहार का स्पष्टीकरण करो? उत्तर-प्रश्न २३१ से २४० तक के अनुसार उत्तर दो।
(१३) निश्चय-व्यवहार मोक्षमार्ग का स्पष्टीकरण प्रश्न २४४-व्यवहार बिना निश्चय का उपदेश कैसे नहीं होता? इसको तीसरी तरह से समझाइये ?
उत्तर--निश्चय से वीतराग भाव मोक्षमार्ग है, उसे जो नही पहिचानते उनको ऐसे ही कहते रहे तब तो वे समझ नही पाये, तब उनको तत्त्व श्रद्वान-ज्ञान पूर्वक परद्रव्य के निमित्त मिटने की सापेक्षता द्वारा व्यवहारनय से व्रत-शील-सयमादि को वीतराग भाव के विशेप बतलाये, तब उन्हे वीतराग भाव की पहिचान हुई-इस प्रकार व्यवहार विना निश्चय के उपदेश का न होना जानना।
प्रश्न २४५-व्यवहार के बिना निश्चय का उपदेश कैसे नहीं होता -~~-इस बात का उत्तर प्रश्न २४४ के उत्तर में दिया--अब इस प्रश्न के उत्तर को स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर-वीतराग भाव मोक्षमार्ग को व्रत-शील-सयमादि रूप शुभभावो के द्वारा समझाया है, क्योकि अज्ञानी "मात्र वीतराग भाव मोक्षमार्ग" कहने से समझता नहीं है, जिसको अपने ज्ञायक स्वभाव के आश्रय से वीतराग भाव मोक्षमार्ग प्रगटा है उसके व्रतादि को उपचार से मोक्षमार्ग कहा है । अज्ञानी के व्रतादि की वात यहाँ पर नही है । जितना भी व्यवहार है वह सब धर्मद्रव्य के समान है ।
प्रश्न २४६-ज्ञानी के अस्थिरता सम्वन्धी वत-शीलादि को उपचार से मोक्षमार्ग कहने से क्या लाभ रहा?
उत्तर-ज्ञानी को भूमिकानुसार इसी प्रकार का शुभभाव होगा, अन्य प्रकार का नही; ऐसा पता चल जाता है।
प्रश्न २४७-(१) "तत्त्व श्रद्धान-ज्ञान पूर्वक (२) परद्रव्य के