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( २१३ )
उत्तर --- व्यवहारनय से ज्ञानवाला जीव है - ऐसा निरूपण किया हो, उसे असत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान छोडना और निश्चयनय से आत्मा अभेद है - ऐसा निरूपण किया हो उसे सत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान अगीकार करना । क्योकि भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने समयसार कलश १७३ मे कहा है कि जितना भेदरूप व्यवहार है । वह सब जिनेन्द्र देवो ने छुडाया है और निश्चय को अगीकार करके निज महिमा में प्रवर्तन का आदेश दिया है ।
प्रश्न २२३- 'ज्ञानवाला जीव है' - ऐसे निश्चय व्यवहार के विषय मे कुन्दकुन्द भगवान ने मोक्ष पाहुड गाथा ३१ में क्या बताया है ?
उत्तर - ज्ञानवाला जीव है - ऐसे भेदरूप व्यवहार की श्रद्धा छोड़कर मैं अभेद आत्मा हूँ जो ऐसी श्रद्धा करता है वह योगी अपने कार्य मे जागता है तथा मैं ज्ञानवाला आत्मा हूँ - ऐसे व्यवहार मे जागता है, वह अपने कार्य मे सोता है इसलिए ज्ञानवाला जीव है ऐसे भेदरूप व्यवहार का श्रद्धान छोडकर मैं अभेद आत्मा हूँ-ऐसे निश्चयनय का श्रद्धान करना योग्य है ।
प्रश्न २२४ - 'ज्ञानवाला जीव है' ऐसे भेदरूप व्यवहार का श्रद्धान छोड़कर मैं अभेद आत्मा हूँ- ऐसे निश्चयनय का श्रद्धान करना क्यो योग्य है ?
उत्तर- ( १ ), अभेदरूप आत्मा को 'ज्ञानवाला जीव है' ऐसा व्यवहारनय भेदरूप निरूपण करता है सो भेदरूप श्रद्धान से ही मिथ्यात्व होता है इसलिए उसका त्याग करना । (२) तथा अभेदरूप आत्मा को निश्चयनय भेदरूप निरूपण नही करता है, यथावत् निरूपण करता है किसी को किसी मे नही मिलता है। सो ऐसे अभेदरूप श्रद्धा से ही सम्यक्त्व होता है इसलिए उसका श्रद्धान करना ।
प्रश्न २२५ - आप कहते हो 'ज्ञान वाला जीव है' - ऐसे भेदरूप व्यवहारनय के श्रद्धान से मिथ्यात्व होता है इसलिए उसका त्याग