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________________ ( २०५ ) प्रश्न १८१-मैं पं० कैलाशचन्द्र जैन हूं-ऐसे ध्यवहारनय के कथन को ही जो सच्चा मान लेता है-उस जीव को जिनवाणी में किस-किस नाम से सम्बोधित किया है ? उत्तर-(१) मैं ५० कैलाशचन्द्र जैन हूँ-ऐसे व्यवहारनय के कथन को ही जो सच्चा मान लेता है उसे पुरुषार्थ सिद्धियुपाय के श्लोक ६ मे कहा है कि 'तस्य देशना नास्ति ।' (२) मैं प० कैलाशचन्द्र जैन हूँ-ऐसे व्यवहारनय के कथन को ही जो सच्चा मान लेता है उसे समयसार कलश ५५ मे कहा है कि'यह उसका अज्ञान मोह अधकार है, उसका सुलटना दुनिवार है।' (३) मैं प० कलाशचन्द्र जैन हूँ---ऐसे व्यवहारनय के कथन को ही जो सच्चा मान लेता है उसे प्रवचनसार गाथा ५५ मे कहा है कि "वह पद-पद पर धोखा खाता है।" (४) मैं १० लाशचन्द्र जैन हूँ-ऐसे व्यवहारनय के कथन को ही जो सच्चा मान लेता है उसे आत्मावलोकन मे कहा है कि "यह उसका हरामजादीपना है। प्रश्न १८२-नारकी जीन-इस वाक्य पर निश्चय-व्यवहार का स्पष्टीकरण करो? उत्तर-(प्रश्न १७२ से १८१ तक के अनुसार उत्तर दो।) प्रश्न १८३-देव जीव-इस वाक्य पर निश्चय-व्यवहार का स्पष्टीकरण करो। उत्तर--(प्रश्न १७२ से १८१ तक के अनुसार उत्तर दो।) प्रश्न १८४-मैं सुबह उठता हूं-इस वाक्य पर निश्चय-व्यवहार का स्पष्टीकरण करो? उत्तर--(प्रश्न १७२ से १८१ तक के अनुसार उत्तर दो।) प्रश्न १८५--मैंने भगवान की पूजा की-इस वाक्य पर निश्चय-- व्यवहार का स्पष्टीकरण करो? उत्तर-(प्रश्न १७२ से १८१ तक के अनुसार उत्तर दो।)
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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