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________________ ( २०२ ) आत्मा यह स्वद्रव्य, १० कोलाशचन्द्र जैन नाम रूप पुद्गल गरीर यह परद्रव्य, इस प्रकार निश्चय नय स्नद्रव्य पर द्रव्य का यथावत् निरूपण करता है, किसी को किसी मे नही मिलाता है। प० कैलाशचन्द्र जैन नामरूप पुद्गल द्रव्यो से सर्वथा भिन्न, स्वभावो से अभिन्न स्वय मिट्ट ज्ञायक भगवान आत्मा हूँ-सो ऐसे ही निश्चयनय के श्रद्धान से सम्यक्त्व होता है, इसलिये उसका श्रद्धान करना। प्रश्न १७६-आप कहते हो कि मैं पं० कैलाशचन्द्र जैन हू--ऐसे व्यवहारनय के श्रद्धान से मिथ्यात्व होता है इसलिए उत्तका त्याग फरना तथा प० कैलाशचन्द्र जैन नामस्प पुद्गल द्रव्यो से सर्वथा भिन्न, स्वभावो से अभिन्न स्वय सिद्ध ज्ञायक भगवान आत्मा हू-ऐसे निश्चयनय के श्रद्वान से सम्यक्त्व होता है, इसलिए उसफा श्रद्धान फरना । यदि ऐसा है तो जिनमार्ग में दोनो नयो का ग्रहण करना कहा है सो कैसे है ? __उत्तर-जिनमार्ग मे कही तो प० कैलाशचन्द्र जैन नामरूप पुद्गल द्रव्यो से सर्वथा भिन्न, स्वभावो से अभिन्न स्वय सिह ज्ञायक भगवान आत्मा हूँ-ऐसे निश्चयनय की मुख्यता लिए व्याख्यान है, उसे तो "सत्यार्थ ऐसे ही है"--ऐसा जानना। तथा कही मैं प० कैलाशचन्द्र जैन हूँ-ऐसे व्यवहारनय की मुख्यता लिये व्याख्यान है उसे "ऐने हैं नही, निमित्तादि की अपेक्षा उपचार किया है"---ऐसा जानना। मैं १० कैलाशचन्द्र जैन नही हूँ, मैं तो १० कलाशचन्द्र जैन नामरूप पुद्गल द्रव्यो से सर्वथा भिन्न, रवभावो से अभिन्न स्वय सिद्ध ज्ञायक भगवान आत्मा हूँ--इस प्रकार जानने का नाम ही निश्चय-व्यवहार दोनो नयो का ग्रहण है। प्रश्न १७७--कुछ मनीषी ऐसा कहते हैं कि "मै पं० कैलाशचन्द्र जैन भी हूं और पं० कैलाशचन्द्र जैन नामरूप पुद्गल द्रव्यो से सर्वथा भिन्न, स्वभावो से अभिन्न स्वयं सिद्ध ज्ञायक भगवान आत्मा भी हूँ।"
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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