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________________ ( २०१ ) प्रश्न १७४–६० कैलाशचन्द्र जैन नामरूप पुद्गल द्रव्यो से सर्वथा भिन्न स्वभावो से अभिन्न स्वय सिद्ध ज्ञायक भगवान आत्मा हूं-ऐसे निश्चयनय को अंगीकार करने और मै प० कैलाशचन्द्र जैन हू-ऐसे व्यवहारनय के त्याग के विषय में भगवान कुन्दकुन्दाचार्य ने क्या कहा है ? उत्तर--मोक्ष प्राभृत गाथा ३१ मे कहा है कि मैं प० कैलाशचन्द्र जैन हूँ-ऐसे जो व्यवहार की श्रद्धा छोडकर, ५० कैलाशचन्द्र जैन नामरूप पुद्गल द्रव्यो से सर्वथा भिन्न, स्वभावो से अभिन्न स्वय सिद्ध निज ज्ञायक भगवान आत्मा हूँ-जो ऐसे निश्चयनय की श्रद्धा करता है वह योगी अपने आत्मकार्य मे जागता है तथा मैं प० कैलाशचन्द्र जैन हूँ-जो ऐसे व्यवहार मे जागता है वह अपने आत्मकार्य मे सोता है। इसलिये मैं प० कैलाशचन्द्र जैन हूँ-ऐसे व्यवहारनय का श्रद्धान छोडकर, कैलाशचन्द्र जैन नामरूप पुदगल द्रव्यो से सर्वथा भिन्न स्वभावो से अभिन्न स्वय सिद्ध ज्ञायक भगवान आत्मा हूँ-ऐसे निश्चयनय का श्रद्धान करना योग्य है।। प्रश्न १७५–मै पं० कैलाशचन्द्र जैन हू-ऐसे व्यवहारनय का श्रद्धान को छोडकर, पं० कैलाशचन्द्र जैन नामरूप पुद्गलो से सर्वथा 'भिन्न, स्वभावो से अभिन्न स्वयं सिद्ध ज्ञायक भगवान आत्मा हूं-ऐसे निश्चयनय का श्रद्धान करना क्यों योग्य है ? उत्तर-(१) व्यवहारनय-प० कैलाशचन्द्र जैन नामरूप पुद्गलो से सर्वथा भिन्न, स्वभावो से अभिन्न स्वय सिद्ध निज ज्ञायक भगवान आत्मा हूँ--यह स्वद्रव्य, ५० कैलाशचन्द्र जैन नाम रूप पुदगल शरीर -यह परद्रव्य, इस प्रकार व्यवहारनय स्वद्रव्य परद्रव्य को किसी को 'किसी मे मिलाकर निरूपण करता है सो मैं प० कैलाशचन्द्र जैन हूँ ऐसे व्यवहारनय के श्रद्धान से मिथ्यात्व होता है, इसीलिये उसका त्याग करना । (२) निश्चयनय-५० कैलाशचन्द्र जैन नामरूप पुद्गल द्रव्यो से सर्वथा भिन्न, स्वभावो से. अभिन्न स्वय सिद्ध निज ज्ञायक भगवान
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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