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( १९६ ) उत्तर-"अहो ज्ञानी जनो । वर्ण से लेकर गुणस्थान पर्यंत २६ भाव है, उन सबको एक पुद्गल की ही रचना जानो, इसलिए यह भाव पुद्गल ही हो, आत्मा न हो; क्योकि आत्मा तो विज्ञानघन है, ज्ञान का पुज है इसलिए वह इन वर्णादिक भावो से अन्य ही है।"
प्रश्न १६२-निश्चय-व्यवहार के विषय मे समयसार कलश ४० मे क्या बताया है ?
उत्तर-"घी से भरे हुए घडे को व्यवहारनय से 'घी का घडा' कहा जाता है तथापि निश्चय से घडा घी स्वरूप नहीं है, घी घी स्वरूप है, घडा मिट्टी स्वरूप है; उसी प्रकार वर्ण, पर्याप्ति, इन्द्रियो इत्यादि के साथ एक क्षेत्रावगाहरूप सम्बन्ध वाले जीव को सूत्र मे व्यवहारनय से पचेन्द्रिय जीव, पर्याप्त जीव, बादर जीव, देव जीव, मनुष्य जीव इत्यादि कहा गया है तथापि निश्चय से जीव उस स्वरूप नही है; वर्ण-पर्याप्ति-इन्द्रियाँ आदि पुदगल स्वरूप हैं, जीव ज्ञान स्वरूप है। (७) सयोगरूप निश्चय-व्यवहार का नौ बोलो द्वारा स्पष्टीकरण
प्रश्न १६३–'मनुष्य जीव' पर निश्चय-व्यवहार का स्पष्टीकरण करो?
उत्तर- "शरीर रहित जीव है" ऐसा निश्चयनय से जो निरूपण किया हो उसे सत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान अगीकार करना और मनुष्य जीव है ऐसा व्यवहारनय से जो निरूपण किया हो उसे असत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान छोडना क्योकि समयसार कलश १७३ मे जितना पराश्रित व्यवहार है वह सब जिनेन्द्र देवो ने छुडाया है और निश्चयनय को अगीकार करके निज महिमा मे प्रवर्तन का आदेश दिया है।
प्रश्न १६४--निश्चय-व्यवहार "मनुष्य जीव" के विषय में मोक्षपाहुड़ गाथा ३१ में क्या बताया है ?