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( १९१ ) उत्तर-त्रिकाली स्वभाव यथार्थ का नाम निश्चय-ऐसा निश्चय-- नय से निरूपण किया हो उसे आश्रय करने योग्य सत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान अगीकार करना और शुद्ध पर्याय उपचार का नाम व्यवहार--ऐसा व्यवहार नय से जो निरूपण किया हो वह अनादिअनन्त नही है और आश्रय करने योग्य नहीं है इस अपेक्षा असत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान छोडना।
प्रश्न १४७-शास्त्रो मे जहाँ शुद्ध पर्याय निश्चय और भूमिकानसार शुभभाव को व्यवहार कहा हो-वहाँ क्या जानना चाहिये ?
उत्तर-~-शुद्ध पर्याय यथार्थ का नाम निश्चय-ऐसा निश्चयनय से जो निरूपण किया हो उसे प्रगट करने योग्य सत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान अगीकार करना और भूमिकानुसार शुभ भावो को उपचार का नाम व्यवहार ऐसा व्यवहारनय से जो निरूपण किया हो~-उसे बध का कारण हेय जानकर असत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान छोडना ।
प्रश्न १४८-निश्चय और व्यवहार के विषय मे मोक्षपाहुड गाथा ३१ में कुन्द-कुन्द भगवान ने क्या कहा है ?
उत्तर-जो व्यवहार मे सोता है अर्थात् जो व्यवहार की श्रद्धा छोडकर निश्चय की श्रद्धा करता है वह योगी अपने आत्मकार्य मे जागता है तथा जो व्यवहार मे जागता है वह अपने कार्य मे सोता है इसलिए व्यवहारनय का श्रद्धान छोडकर निश्चयन य का श्रद्धान करना योग्य है । समाधितन्त्र गाथा ७८ मे भी यही बताया है।
प्रश्न १४६-व्यवहार का श्रद्धान छोडकर निश्चयनय का श्रद्धान क्यो करना योग्य है ?
उत्तर-(१) व्यवहारनय स्वद्रव्य-परद्रव्य को किसी को किसी मे मिलाकर निरूपण करता है । सो ऐसे ही श्रद्धान से मिथ्यात्व होता है, इसलिए उसका त्याग करना चाहिये। निश्चयनय = स्वद्रव्य-- परद्रव्य को किसी को किसी मे मिलाकर निरूपण नही करता यथावत