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प्रश्न १४०-समयसार नाटक में व्यवहार भाव को क्या कहा है ?
उत्तर-असख्यात लोक प्रमाण जो मिथ्यात्व भाव है वह व्यवहार भाव है ऐसा केवली भगवान कहते है।" ऐसा कहा है।
प्रश्न १४१-निश्चय व्यवहार के विषय मे सममसार गाथा ११ में क्या बताया है ?
उत्तर-व्यवहारनय अभूतार्थ है और शुद्धनय भूतार्थ है-ऐसा ऋषीश्वरो ने दईया है, जो जीव भूतार्थ का आश्रय करता है वह जीव सम्यकदृष्टि है।
प्रश्न १४२-निश्चय व्यवहार के विषय में समयसार गाथा ५६ में क्या बताया है ?
उत्तर- "यह वर्ण से लेकर गुणस्थान पर्यन्त जो २९ भाव कहे. गये, वे व्यवहारनय से तो जीव के है, किन्तु निश्चयनय के मत मे २६ वोलो मे से कोई भी जीव के नही है" ऐसा कहा है।
प्रश्न १४३-प्रवचनसार गाथा ६४ मे किसको छोड़ने और किस का आचरण करने को बताया है ?
उत्तर-"मनुष्य व्यवहार को छोडकर मात्र ज्ञायक अलित चेतना वह ही मैं हूँ ऐसा श्रद्धान-ज्ञान-आचरण" करने को बताया है ।
प्रश्न १४४-निश्चय व्यवहार के विषय मे ममयसार गाथा ६ और ७ में क्या बताया है ?
उत्तर-चार प्रकार के अध्यात्म व्यवहार को भी छुडाया है और अभेदरूप निर्विकल्प अनुभव करने को कहा है।
प्रश्न १४५-नियमसार गाथा ५० में हेय-उपादेय किसे बताया
उत्तर-पूर्वोक्त सर्वभाव पर स्वभाव हैं, पर द्रव्य हैं, इसलिए हेय हैं, अन्तः तत्त्व ऐसा स्वद्रव्य-आत्मा उपादेय है, ऐसा बताया है।
प्रश्न १४६-शास्त्रो में जहाँ त्रिकाली स्वभाव निश्चय और शुद्ध पर्याय व्यवहार कहा हो-वहाँ क्या जानना चाहिए ?