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________________ ( १८६ ) का ग्रहण मानना मिथ्या है। प्रश्न १३३-केवलज्ञानावरणीय के अभाव से केवलज्ञान हुआ"इस वाक्य पर प्रश्नोत्तर १२३ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो? प्रश्न १३४-स्त्री ने रोटी बनाई-इस वाक्य पर प्रश्नोत्तर १२३ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो? प्रश्न १३५-उत्तम मार्दव धर्म पर प्रश्नोतर १२३ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो? प्रश्न १३६-सम्यग्ज्ञान पर प्रश्नोत्तर १२३ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो? प्रश्न १३७-ज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से ज्ञान का क्षयोपशम हुआ-इस वाक्य पर प्रश्नोत्तर १२३ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो ? (६) अवश्य याद रखने योग्य प्रश्न १३८ से १६२ तक प्रश्न १३८-उसयभासी के दोनो नयो का ग्रहण भी मिथ्या बतला दिया, तो वह क्या करे ? उत्तर-निश्चयनय से जो निरूपण किया हो उसे तो सत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान अगीकार करना और व्यवहारनय से जो 'निरूपण किया हो उसे असत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान छोडना। प्रश्न १३६-निश्चयनय के निरूपण को सत्यार्थ मानकर श्रद्धान फरना और व्यवहारनय के निरूपण को असत्यार्थ मानकर श्रद्धान छोडना ऐसा कहीं समयसार में लिखा है ? उत्तर-समयसार कलश १७३ मे कहा है कि "सर्व ही हिंसादि व अहिमादि मे अध्यवसाय है सो समस्त ही छोडना" ऐसा जिनदेवो ने कहा है । अमृतचन्द्राचार्य कहते हैं कि- "इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ कि जो पराश्रित व्यवहार है सो सर्व ही छुडाया है तो फिर सन्त पुरुष एक परम त्रिकाली ज्ञायक निश्चय ही को अंगीकार करके शुद्ध 'ज्ञानधनरूप निज महिमा स्थिति क्यो नही करते ?" ऐसा कहकर आचार्य भगवान ने खेद प्रगट किया है।
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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