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( १८८ ) सम्बन्ध होने से मनुष्य जीव-ऐसा निरूपित करे सो व्यवहारनय है । (५) ऐसे अभिप्राय के अनुसार प्ररूपण से औदारिक शरीर रूप प्रवृत्ति मे दोनो नय बनते हैं। (६) औदारिक शरीर रूप प्रवृत्ति ही तो नय रूप है नही । (७) इसलिए इस प्रकार भी (तेरी मान्यता के अनुसार मनुष्य गरीर यह निश्चय और मनुष्य जीव यह व्यवहार) द'नो नयो का ग्रहण मानना मिथ्या है।
प्रश्न १२६-(१) मैं चला, (२) मैं सोया, (३) मैं बोला, (४) में उठा,(५) मैंने दुकान खोली, इन पाँच वाक्यो पर पृथक्-पृथक् रूप से प्रश्नोत्तर १२३ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो ?
प्रश्न १३०-(१) सम्यग्दर्शन, (२) उत्तम क्षमा, (३) उत्तम ब्रह्मचर्य, (४) उत्तम मार्दव (५)भाषा समिनि, (६) क्ष धापरिपहजय्य (७) अनित्य भावना, इन सात वाक्यो पर पथक्-पथक रूप से प्रश्नोत्तर १२३ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो?
प्रश्न १३१-(१) में कैलाशचन्द्र हूँ, (२) मैं वह हूँ, (३) मै माता हूँ, (४) मै सेठ हूँ, (५) मैं पति हूँ, इन पांच वाक्यो पर पृथक्-- पृथक् रूप से प्रश्नोत्तर १२३ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो?
प्रश्न १३२-आठो कमों के अभाव से सिद्ध दशा की प्राप्ति हुईइस वाक्य पर प्रश्रोत्तर १२३ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो?
उत्तर-(१) क्षायिक दशा प्रवृत्ति मे नय का प्रयोजन ही नही है। (२) क्षायिक दशा तो आत्मा के सर्व गुणो की परिणति है। (३) आत्मा के सर्व गुणो की परिपूर्ण क्षायिक दशा को सिद्ध दशा प्ररपित करे सो निश्चयनय, (४) और सिद्ध दशा आठो कर्मो क अभाव से हुई-ऐसा प्ररूपित करे-सो व्यवहारनय । (५) ऐसे अभिप्राय अनुसार प्ररूपण से उस पूर्ण क्षायिक रूप प्रवृत्ति मे दोनो नय बनते हैं। (६) पूर्ण क्षायिक रूप प्रवृत्ति ही तो नय रूप है नही। (७) इसलिए इस प्रकार भी (तेरी मान्यता के अनुसार सिद्धदशा निश्चय, और आठो कर्मों के अभाव से सिद्धदशा व्यवहार) दोनो नयो।