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ही तो नय रूप है नहीं । ( ७ ) इसलिये इस प्रकार भी दोनो नयो का ग्रहण मानना मिथ्या है। इस वाक्य को मुनिपने पर लगाकर सम-झाइये |
उत्तर- (१) वीतराग सकलचारित्ररूप प्रवृत्ति मे नय का प्रयोजन ही नही है । ( २ ) वीतराग सकलचारित्ररूप प्रवृत्ति आत्मा की शुद्ध परिणति है । (३) वीतराग सकलचारित्ररूप आत्मा की शुद्ध परिणति को मुनिपना निरूपित करे सो निश्चय मुनिपना है, (४) और उस मुनिपने के साथ २८ महाव्रतादि का विकल्प निमित्त व सहचारी होने से २८ महाव्रतादि के भाव को मुनिपना निरूपित करे सो व्यवहारा मुनिपना है । ( ५ ) ऐसे अभिप्राय के अनुसार प्ररूपण से उस प्रवृत्ति में ( वीतराग सकलचारित्ररूप कार्य मे) दोनो नय बनते हैं । ( ६ ) वीतराग सकलचारित्ररूप प्रवृत्ति है वह तो नय रूप है नही । ( ७ ) इस लिये इस प्रकार भी (तेरी मान्यता के अनुसार सकलचारित्ररूप निश्चय मुनिपना और २८ महाव्रतादि रूप प्रवृत्ति व्यवहार मुनिपना) दोनो नयो का ग्रहण मानना मिथ्या है |
प्रश्न १२४– प्रश्न १२३ के अनुसार श्रावकपने पर लगाकर समझाइये |
उत्तर- ( १ ) वीतराग देशचारित्ररूप प्रवृत्ति मे नय का प्रयोजन ही नही है । ( २ ) वीतराग देशचारित्ररूप प्रवृत्ति आत्मा की शुद्ध परिणति है । ( ३ ) वीतराग देशचारित्ररूप आत्मा की शुद्ध परिणति को श्रावकपना निरूपित करे सो निश्चय श्रावकपना, (४) और उस श्रावकपने के साथ बारह अणुव्रतादि का विकल्प निमित्त व सहचारी, होने से बारह अणुव्रतादि को श्रावकपना निरूपित करना सो व्यवहार श्रावकपना है । (५) ऐसे अभिप्राय के अनुसार प्ररूपण से उस प्रवृत्ति' मे ( वीतराग देशचारित्र रूप कार्य मे ) दोनो नय बनते हैं । (६) वीतराग देशचारित्ररूप प्रवृत्ति है वह तो नय रूप है नहीं । ( ७ ) इसलिये इस प्रकार भी (तेरी मान्यता के अनुसार वीतराग देशचारित्र निश्चयः