________________
( १८४ ) प्रश्न १२०-श्रावकपने पर प्रश्नोत्तर ११४ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो?
प्रश्न १२१-उत्तमक्षमा पर प्रश्नोत्तर ११४ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो?
प्रश्न १२२-"(१) तथा प्रवृत्ति मे नय का प्रयोजन ही नहीं है। (२) प्रवृत्ति तो द्रव्य की परिणति है; (३) वहाँ जिस द्रव्य की परिणति हो उसको उसी की प्ररूपित करे सो निश्चयनय, (४) और उस ही को अन्य द्रव्य की प्ररूपित करे सो व्यवहारनय, (५) ऐसे अभिप्रायानुसार प्ररूपण से उस प्रवृत्ति में दोनो नय बनते हैं; (६) कुछ प्रवृत्ति ही तो नयरूप है नहीं, (७) इसलिए इस प्रकार भी दोनो नयों का ग्रहण मानना मिथ्या है ।" इस वाक्य को स्पष्ट रूप से समझाइए?
उत्तर-(१) प्रवृत्ति अर्थात् कार्य, चाहे वह कार्य जड का हो या चेतन का हो, विकारी कार्य हो या अविकारी हो उसमे नय का प्रयोजन ही नही है। (२) प्रवृत्ति अर्थात् कार्य वह तो द्रव्य की परिणति है। (३) वहाँ जिस द्रव्य का कार्य हो-परिणति हो उसको उसी की प्ररूपित (कथन) करे सो निश्चयनय है। (४) और उस ही को उपचार से अन्य द्रव्य की प्ररूपित (कथन) करे सो व्यवहारनय है । (५) ऐसे अभिप्राय के अनुसार प्ररूपण मे (कथन मे) उस प्रवृत्ति मे (कार्य मे) दोनो नय बनते है । (६) कुछ प्रवृत्ति ही तो (कार्य ही तो) नय रूप है नही । (७) इसलिये इस प्रकार भी दोनो नयो का ग्रहण मानना मिथ्या है।
प्रश्न १२३--(१) तथा प्रवृत्ति में नय का प्रयोजन ही नहीं है। (२) प्रवृत्ति तो द्रव्य की परिणति है। (३) वहाँ जिस द्रव्य को परिणति हो उसको उसी को प्ररूपित करे सो निश्चयनय, (४) और उस ही को अन्य द्रव्य की प्ररूपित करे सो व्यवहारनय, (५)ऐसे अभिप्राय के अनुसार प्ररूपण से उस प्रवृत्ति मे दोनो नय बनते हैं, (६) प्रवृत्ति