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या सकलचारित्र मुनिपने की बाते करे और प्रगट ना करे - यह एक ही नय का श्रद्धान होने से एकान्त मिथ्यात्व है ।
प्रश्न ११५ - निश्चय का निश्चयरूप और व्यवहार का व्यवहाररूप श्रद्धान को तीन तरह से स्पष्ट समझाइये ?
उत्तर -- ( १ ) त्रिकाली स्वभाव के आश्रय से ही धर्म की शुरूआत, वृद्धि और पूर्णता होती है अत त्रिकाली स्वभाव आश्रय करने योग्य परम उपादेय है - यह निश्चय का निश्चयरूप श्रद्धान है और शुद्ध पर्याय चाहे क्षायिक हो - वह अनादिअनन्त नही है, उसका आश्रय नही लिया जा सकता क्योकि वह एक समय की है - यह व्यवहार का व्यवहाररूप श्रद्धान है । (२) मोक्षमार्ग मे शुद्ध पर्याय प्रगट करने योग्य उपादेय है - यह निश्चय का निश्चयरून श्रद्धान है और भूमिकानुसार स्थिरता सम्बन्धी शुभभाव बधरूप है हेय है - यह व्यवहार का व्यवहाररूप श्रद्धान है । (३) विकारी भाव अपनी पर्याय में है अत अपने दोप का ज्ञान कराने की अपेक्षा विकारी भाव आत्मा का है -- यह निश्चय का निश्चयरूप श्रद्धान है और जब पर्याय मे दोष होता है तब वहाँ पर द्रव्यकर्म - नोकर्म निमित्त होता है । परन्तु द्रव्यकर्म- नोकर्म विकार नही करता है - यह व्यवहार का व्यवहाररूप श्रद्धा है ।
प्रश्न ११६ - सम्यग्दर्शन पर प्रश्नोत्तर ११४ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो ?
प्रश्न ११७ - ईर्या समिति पर प्रश्नोत्तर ११४ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो ?
प्रश्न ११८ वचनगुप्ति पर प्रश्नोत्तर ११४ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो ?
प्रश्न ११९ क्ष ुधापरिषहजय पर प्रश्नोत्तर ११४ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो ?