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। १८१ । पालने का विकल्प व्यवहार मुनिपना बधरूप है हेय है यह व्यवहार का व्यवहाररूप श्रद्धान है।
प्रश्न १०६-"एक ही नय का श्रद्धान होने से एकान्त मिथ्यात्व है" इसका अर्थ क्या है ?
उत्तर-आत्मा का श्रदान-ज्ञान हुए बिना सर्वथा निश्चय की बात करे, सर्वथा व्यवहार की बात करे या सवथा उभयाभासी की बात करे-वह सब एकान्त मिथ्यात्व है।
प्रश्न ११०-समयसार कलश १११ मे सर्वथा एकान्त क्या बताया है, स्पष्ट समझाइये ?
उत्तर-(अ) व्यवहाराभासी परमार्थभूत ज्ञानस्वरूप आत्मा को तो जानते नही और व्यवहार दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप अनशनादि क्रियाकाण्ड के आडम्बर को मोक्ष का कारण जानकर उसमे तत्पर रहते हैं-उसका पक्षपात करते हैं वे सर्वथा एकान्ती ससार मे डूबते हैं। (आ) निश्चयाभासी आत्मस्वरूप को यथार्थ जानते नही तथा सर्वथा एकान्तवादी मिथ्यादृष्टियो के उपदेश से अथवा अपने आप ही शुद्ध दृष्टि हुये बिना अपने को सर्वथा अबन्ध मानते है । व्यवहार को निरर्थक जानकर छोडकर स्वच्छन्दी होकर विषय-कषायो मे वर्तते हैं वे सर्वथा एकान्ती ससार समुद्र मे डूबते हैं ।
[समयसार कलश १११] प्रश्न १११-एकान्त मिथ्यात्व के विषय में समयसार कलश १३७ के भावार्थ मे क्या बताया है ?
उत्तर-"पहले तो मिथ्यादृष्टि का अध्यात्म शास्त्र में प्रवेश ही नहीं है और यदि प्रवेश करता है तो विपरीत समझता है । निश्चयाभासी शुभभाव को सर्वथा छोडकर भ्रष्ट होता है अथवा व्यवहाराभासी निश्चय को भली-भांति जाने बिना शुभभाव से ही मोक्ष मानता है, परमार्थतत्व मे मूढ रहता है।" ऐसा बताया है।