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अर्थ -- निश्चयrय के विषय को छोडकर विद्वान व्यवहार के द्वारा प्रवर्तते हैं, परन्तु परमार्थ के ( आत्मस्वरूप के) आश्रित यतीश्वरों के ही कर्मों का नाश आगम मे कहा गया है । ( केवल व्रत- तदापि में प्रवर्तन करने वाले पण्डितो के कर्मक्षय नही होता । )
प्रश्न १०६ - निश्चय व्यवहार के विषय में समयसार गाथा २७२ में क्या बताया है ?
उत्तर - जो निश्चयनय के आश्रय से प्रवर्तते हैं वे ही कर्मों से मुक्त होते हैं और जो एकान्त से व्यवहारनय के आश्रय से ही प्रवतते हैं वे कभी कर्मों से मुक्त नही होते हैं ।
प्रश्न १०७ - " निश्चय का निश्चयरूप और व्यवहार का व्यवहरिरूप शुद्धान करना योग्य है ।" इसका तात्पर्य क्या है ?
उत्तर - (१) निश्चयनय के आश्रय से धर्म होता है यह निश्चय वा निश्चयरूप श्रद्धान है । व्यवहार के आश्रय से वध होता है यह व्यवहार का व्यवहाररूप श्रद्धान है । (२) सवर - निर्जरा मोक्षमार्गरूप हैं यह निश्चय का निश्चयरूप श्रद्धान है । आस्रव बध ससार मार्गरूप हैं यह व्यवहार का व्यवहाररूप श्रद्धान है ।
प्रश्न १०८ - " निश्चय का निश्चयरूप और व्यवहार का व्यवहाररूप श्रद्धान करने योग्य है ।" इसके दृष्टान्त देकर समझाओ ?
उत्तर- (अ) चौथे गुणस्थान मे निश्चय सम्यग्दर्शन तथा स्वरूपाचरणचारित्र की प्राप्ति यह निश्चय का निश्चयरून श्रद्धान है और सच्चे देव गुरु- शास्त्र की भक्ति का विकल्प तथा सात तत्वो की भेदरूप श्रद्धा वरूप है है है यह व्यवहार का व्यवहाररूप श्रद्धान है ( आ ) पाँचवे गुणस्थान मे देशचारित्ररूप शुद्धि श्रावकपना है यह निश्चय का | निश्चयरूप श्रद्धान है और बारह अणुव्रतादि का विकल्प व्यवहार श्रावकपना बध रूप हे हेय है यह व्यवहार का व्यवहाररूप श्रद्धान है । (इ) छट्ठे गुणस्थान में सकलचारित्ररूप शुद्धि निश्चय मुनिपना है यह निश्चय का निश्चयरूप श्रद्धान है और २८ मूलगुण आदि