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उत्तर - प्रश्न ६५ के अनुसार उत्तर दो ।
प्रश्न १०० - इर्या समिति पर प्रश्नोत्तर ६५ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो ?
प्रश्न १०१ - क्षुधापरिषहजय पर प्रश्नोत्तर १५ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो ?
प्रश्न १०२ - सम्यग्ज्ञान पर प्रश्नोत्तर ६५ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो ?
प्रश्न १०३ - उत्तम क्षमा पर प्रश्नोत्तर ६५ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो ?
(५) तीसरी भूल का स्पष्टीकरण
प्रश्न १०४ - श्रद्धान तो निश्चय का रखते हैं और प्रवृत्ति व्यवहाररूप रखते हैं-- क्या उभयाभाती का इस प्रकार दोनो नयो को अंगीकार करना ठीक है ?
उत्तर - बिल्कुल गलत है, क्योंकि उभयाभासी को यथार्थ निश्चयव्यवहार का ज्ञान ही नही है, इसलिए उसका दोनो नयो का ग्रहण मानना मिथ्या है, क्योकि जिसका श्रद्धान हो उसी की प्रवृत्ति होनी चाहिये ।
प्रश्न १०५ - बहुत से ऐसा कहते हैं कि भाई निश्चय में तो कुछ करना है ही नहीं, अब व्रतादिक करके शुद्ध हो जावो - क्या यह उनका कहना ठीक है
?
उत्तर- उनका कहना बिल्कुल गलत है, क्योकि ऐसे महानुभाव तो उभयाभासी मे आ जाते हैं । इसलिए इनका भी दोनो नयो का ग्रहण मानना मिथ्या है। इसी बात को समयसार गाथा १५६ मे कहा है कि
विद्वानजन भूतार्थ तज, व्यवहार मे वर्तन करे । पर कर्मनाश विधान तो, परमार्थ आश्रित सत के ॥ १५६ ॥