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( १७८ ) यह दोनो ही सच्चे मोक्षमार्ग हैं, इन दोनों को उपादेय मानना-वह तो मिथ्यावुद्धि ही है । इसे सम्यग्दर्शन पर लगाकर समझाओ ? उत्तर-(१) श्रद्धागुण को शुद्ध पर्याय प्रगटी भूतार्थ है सो निश्चय सम्यग्दर्शन कहा है, सच्चे देव-गुरु-शास्त्र के प्रति अस्थिरता का राग तथा सात तत्त्वो की भेदरूप श्रद्धा अभूतार्थ है सो व्यवहार सम्यग्दर्शन कहा है। सो ऐसा ही मानना । (२) परन्तु निश्चय सम्यग्दर्शन और व्यवहार सम्यग्दर्शन इन दोनो को ही सच्चा सम्यग्दर्शन है और उपादेय है- ऐसा मानना मिथ्यावुद्धि ही है।
प्रश्न ६७-(१) इस प्रकार भूतार्थ-अभूतार्थ मोक्षमार्गपने से इनको निश्चय-व्यवहार कहा है, सो ऐसा ही मानना। (२) परन्तु यह दोनो ही सच्चे मोक्षमार्ग हैं, इन दोनो को उपादेय मानना-वह तो मिथ्यानुद्धि ही है, इसे 'श्रावकपने पर लगाकर समझाइये?
उत्तर--(१) श्रावकपने मे दो चौकडी कपाय के अभावपूर्वक देशचारित्ररूप प्रगट शुद्धि भूतार्थ है सो निश्चय श्रावकपना कहा है, बारह अणुव्रतादि का विकल्प अभूतार्थ है-सो व्यवहार श्रावकपना कहा है, सो ऐसा ही मानना । (२) परन्तु निश्चय श्रावकपना और व्यवहार श्रावकपना इन दोनो को ही सच्चा श्रावकपना है और उपादेय हैं-ऐसा मानना मिथ्यावृद्धि ही है।
प्रश्न ६८-(१) इस प्रकार भूतार्थ-अभूतार्थ मोक्षमार्गपने से इनको निश्चय व्यवहार कहा है, सो ऐसा हो मानना । (२) परन्तु यह दोनो ही सच्चे मोक्षमार्ग हैं, इन दोनो को उपादेय मानना-वह तो मिथ्यावुद्धि ही है, इसे 'मनोगुप्ति' पर लगाकर समझाइये।
उत्तर-प्रश्न ६५ के अनुसार उत्तर दो।
प्रश्न ६६-इस प्रकार भूतार्थ-अभूतार्थ मोक्षमार्गपने से इनको निश्चय व्यवहार कहा है; सो ऐसा ही मानना । परन्तु यह दोनो ही सच्चे मोक्षमार्ग हैं। इन दोनो को उपादेय मानना-वह तो मिथ्याबुद्धि ही है।" इसे आदान निक्षेपण समिति पर लगाकर समझाओ?