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ग्रन्न ९२- सम्यग्ज्ञान पर प्रश्नोत्तर ८६ के अनुसार नव उत्तर दो ?
प्रश्न ६३-उत्तम क्षमा पर प्रश्नोत्तर ८६ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो ?
प्रश्न २४ - ( १ ) - इस प्रकार भूतार्थ- अनुतायें मोक्षमापने ने इनको (शुद्धि अंडा और अशुद्धि को ) निश्चय व्यवहार कहा है मी ऐसा ही मानना । (२) परन्तु यह दोनों हो सच्चे मोक्षमार्ग है, इन दोनों को उपादेय मानना - यह तो बुद्धि ही है, इसको मोल
कर मकाओ ?
उत्तर- (१) साया में जो वृद्धि बंध है वह स्वार्थ है मो निश्चय कहा है; बद्धि कम है वह अमृता है सो व्यवहार कहा हैसी ऐसा ही मानना । (२) परन्तु शुद्धि बंग भूवार्य है और अमुवि अंध अनुतायें व्यवहार है, इन दोनों को ही सच्चे मलमार्ग है और उपदेय है-ऐसा नानना निव्यावृद्धि ही है ।
प्रश्न ६५ - ( १ ) इस प्रकार सुतार्थ अमृता मोक्षमापने मे इन निश्चय व्यवहार कहा है; मो ऐसा ही मानना । (२) परन्तु यह दोनों हो सच्चे मोलभाग हैं इन दोनों को उपादेय मानना ह तो मिध्यावृद्धि ही है-इसे 'मुनिपता' पर लगाकर समझाओ ? उत्तर- (१) मुनिया में तीन चौकड़ी कषाय के म
चारित्र रूप प्रगट बुद्धि मृतार्थ है सो निश्चय मुदिता रहा है; २८ मूलगु पालने आदि का अर्थ है सो हार मुनिया कहा है; मी ऐसा ही मानना । (२) परन्तु क्लचारित्र रूप वृद्धि सुतार्थनिय सुविधा है और अस्थिरता सम्बन्धी राग अर्थ व्यवहार मुनिपना है । इन दोनों की ही सच्चा मुनिपता है और देय हैं ऐसा मानना निव्यावृद्धि ही है।
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प्रश्न ६६ - ( १ ) इस प्रकार सुतार्थ अमृतार्थ मोजमापने मे इनकी निश्चय व्यवहार कहा है; सो ऐसा ही मानना । (२) परन्तु