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( १७५ ) प्रश्न ८२-शुद्धपने के कितने अर्थ हैं ?
उत्तर---शुद्धपना दो अर्थों में प्रयुक्त होता है - (१) द्रव्य अपेक्षा शुद्धपना । (२) पर्याय अपेक्षा शुद्धपना।
प्रश्न ८३-द्रव्य अपेक्षा शुद्धपना क्या है ?
उत्तर-पर द्रव्यो से भिन्नपना और अपने भावो से (गुणो से) अभिन्नपना-उसका नाम द्रव्य अपेक्षा शुद्धपना है ।
प्रश्न ८४–पर्याय अपेक्षा शुद्धपना क्या है ?
उत्तर-निर्मल दशा का प्रगट होना अर्थात् औपाधिक भावो का अभाव होना -उसका नाम पर्याय अपेक्षा शुद्धपना है।
प्रश्न ८५-उभयाभासी प्रश्न करता है कि (अ) समयसारादि में शुद्ध आत्मा के अनुभव को निश्चय कहा है। (आ) व्रत-तप-संयमादि को व्यवहार कहा है, उसी प्रकार ही हम मानते है, परन्तु आप हमे झूठा क्यो कहते हो?
उत्तर-(१) शुद्ध आत्मा का पर्याय मे अनुभव (प्रगटपना) सच्चा मोक्षमार्ग है इसलिये उसे पर्याय अपेक्षा शुद्धपना कहा है। (२) स्वभाव से (अनन्त गुणो से) अभिन्न परभाव से (द्रव्यकर्म-नोकर्म-भावकर्म से) भिन्न-ऐसा द्रव्य अपेक्षा शुद्धपना कहा है । [अ] तू उभयाभासी ससारी मिथ्यादृष्टि है । तुझे वर्तमान पर्याय मे शुद्धता प्रगट नही है और द्रव्य अपेक्षा तू शुद्धता मानता नही है इसलिए ससारी को सिद्ध मानना ऐसा भ्रमरूप अथ शुद्ध का नही जानना। [आ] व्रत-तपादि मोक्षमार्ग है नही, परन्तु जिसको अपनी आत्मा के आश्रय से पर्याय मे मोक्षमार्ग प्रगटा है उस जीव के व्रत-तपादिक को निमित्तादिक की अपेक्षा उपचार से मोक्षमार्ग कहा है। परन्तु तुझे पर्याय मे मोक्षमार्ग प्रगटा नही है अत तेरे व्रत-तपादि के भावो पर उपचार भी सम्भव नही है । इसलिये तेरा माना हुआ निश्चय-व्यवहार सब झूठा है।
प्रश्न ८६-समयसारादि में शुद्ध आत्मा के अनुभव को निश्चय कहा है; व्रत-तप सयमादि को व्यवहार कहा है उसी प्रकार हम