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( १७२ ) व्यवहार; सो तेरा ऐसा मानना ठीक नहीं है; (२) क्योकि किसी द्रव्य भाव का नाम निश्चय और किसी का नाम व्यवहार-ऐसा नहीं है; (३) एक ही द्रव्य के भाव को उस स्वरूप ही निरूपण करना सो निश्चयनय है, उपचार से उस द्रव्य के भाव को अन्य द्रव्य के भाव स्वरूप निरूपण करना सो व्यवहार है।" इस वाक्य पर मुनिपने को लगाकर समझाइये?
उत्तर-(१) ५० जी उभयाभासी मान्यता वाले शिष्य को समझाते हैं कि तू पर्याय मे प्रगट ना होने पर भी सकलचारित्र को 'निश्चय मुनिपना मानता है और २८ महाव्रतादि के पालन को व्यवहार मुनिपना मानता है-सो ऐसा तेरा निश्चय व्यवहार मुनिपने का स्वरूप मानना ठीक नहीं है, (२) क्यो ठीक नहीं है ? आत्मा के चारित्रगुण की शुद्ध पर्याय का नाम निश्चय मुनिपना और चारित्रगुण की विकारी पर्याय का नाम व्यवहार मुनिपना--ऐसा निश्चय व्यवहार मुनिपने का स्वरूप जिनागम मे नही है, (३) जिनागम मे निश्चयव्यवहार मुनिपने का स्वरूप केसा बताया है ? उत्तर-आत्मा के चारित्रगुण मे प्रगट सकलचारित्र रूप शुद्धि को मुनिपना निरूपण करना सो निश्चय मुनिपना कहा है और प्रगट सकलचारित्र मुनिपने के साथ २८ महाव्रतादि का भाव होने से २८ महाव्रतादि को उपचार से मुनिपना निरूपण करना-सो व्यवहार मुनिपना कहा है ।
प्रश्न ६७-श्रावकपने पर प्रश्नोत्तर ६६ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो?
प्रश्न ६८-सम्यग्दर्शन पर प्रश्नोत्तर ६६ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो?
प्रश्न ६६-ई समिति पर प्रश्नोत्तर ६६ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो?
प्रश्न ७०-वचनगुप्ति पर प्रश्नोत्तर ६६ के अनुसार प्रश्न व उत्तर दो?