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________________ ( १६६ ) प्रश्न ५४-उभयाभासी शुद्धि अंश और अशुद्धि अंश को क्या जानता है ? ___ उत्तर-शुद्धि अश निश्चय और अशुद्धि अश व्यवहार-इस प्रकार दोनो को उपादेय मानता है। प्रश्न ५५--उभयभासी मोक्षमार्ग मे निश्चय-व्यवहार वोनो को उपादेय मानता है-इस विषय मे प० जी ने क्या कहा है ? उत्तर-निश्चय-व्यवहार दोनो को उपादेय मानता है, वह भी भ्रम है, क्योकि निश्चय-व्यवहार का स्वरूप तो परस्पर विरोध सहित है । समयसार ११वी गाथा मे कहा है कि व्यवहार अभूतार्थ है, सत्य स्वरूप का निरूपण नहीं करता, किसी अपेक्षा उपचार से अन्यथा निरूपण करता है तथा शुद्धनय जो निश्चय है वह भूतार्थ है, जैसा वस्तु का स्वरूप है वैसा निरूपण करता है । इस प्रकार इन दोनो का स्वरूप तो विरुद्धता सहित है। प्रश्न ५६-क्या निश्चय सम्यकदर्शन और व्यवहार सम्यकदर्शन दोनो उपादेय हैं ? उत्तर-नही, क्योकि निश्चय सम्यगदर्शन प्रगट करने योग्य उपादेय है और व्यवहार सम्यकदर्शन हेय है। परन्तु जो निश्चय सम्यकदर्शन और व्यवहार सम्यक्दर्शन दोनो को उपादेय मानता है वह भी भ्रम है क्योकि निश्चय सम्यकदर्शन और व्यवहार सम्यकदर्शन का स्वरूप तो परस्पर विरोध सहित है। समयसार की ११वी गाथा मे कहा है कि व्यवहार सम्यकदर्शन अभूतार्थ है क्योकि वह निश्चय सम्यक्दर्शन का निरूपण नहीं करता, निमित्त की अपेक्षा उपचार से अन्यथा निरूपण करता है । तथा निश्चय सम्यकदर्शन है वह भूतार्थ है जैसा सम्यादर्शन का स्वरूप है वैसा निरूपण करता है। इस प्रकार निश्चयव्यवहार सम्यकदशन का स्वरूप तो परस्पर विरुद्धता सहित है। इसलिए निश्चय सम्यकदर्शन प्रगट करने योग्य उपादेय है और व्यवहार सम्यकदर्शन हेय है।
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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