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( १६८ ) प्रस्न ४६-समयसार कलश ११० मे मोक्षमार्ग मे शुद्धिअश अशुद्धिअंश के विषय में क्या बताया है ?
उत्तर-एक जीव मे शुद्धपना-अशुद्धपना एक ही पाल मे होता है। परन्तु जितना अश शुद्धपना है उतना अश कर्मक्षपण है । जितना अश अशुद्धपना है उतना अश कर्मवध होता है। एक ही काल मे दोनो कार्य होते हैं ऐसा ही है, सन्देह नही करना। [द्रव्यसग्रह गा० ४७ तथा पुरुषार्थ सिद्धि उपाय गा० २१३ से २१४ मे ऐसा ही कहा
(३) शुद्धि प्रगट करने योग्य उपादेय व्यवहार हेय है। प्रश्न ५०-मोक्षमार्ग में हेय-उपादेय किस प्रकार है ?
उत्तर- शुद्धि अश प्रगट करने योग्य उपादेय है और अशुद्धि अश हेय है।
प्रश्न ५१-चौथे गुणस्थान मे हेय-उपादेयपना किस प्रकार है ?
उत्तर-चौथे गुणस्थान में श्रद्धागुण की शुद्ध पर्याय प्रगट हो जाती है-वह निश्चय सम्यग्दर्शन है तथा अनन्तानुबधी क्रोधादि के अभावरूप स्वरूपाचरणचारित्र प्रगट हो जाता है-यह तो प्रगट करने योग्य उपादेय है । सच्चे देव-गुरु-शास्त्र के प्रति अस्थिरता का राग तथा सात तत्त्वो की भेदरूप श्रद्धा, यह हेय है।
प्रश्न ५२-पांचवें गुणस्थान मे हेय उपादेयपना किस प्रकार है ?
उत्तर-पाँचवे गुणस्थान मे दो चौकडी कषाय के अभावरूप 'देशचारित्र रूप शुद्ध प्रगट करने योग्य उपादेय है । बारह अणुव्रतादिक का अस्थिरता सम्बन्धी राग हेय है।।
प्रश्न ५३-छठे गुणस्थान में हेय-उपादेयपना किस प्रकार है ?
उत्तर-छठे गुणस्थान मे तीन चौकडी कषाय के अभावरूप "सकल चारित्ररूप शुद्धि प्रगट करने योग्य उपादेय है । २८ मूलगुणादि के पालन का अस्थिरता सम्बन्धी राग हेय है।