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प्रश्न ४३-क्या निश्चय कायगुप्ति और व्यवहार कायगुप्तिऐसी दो प्रकार की कायगुप्ति हैं ?
उत्तर-(प्रश्न ३८ के अनुसार उत्तर दो)
प्रश्न ४४-~-क्या निश्चय उत्तमक्षमा और व्यवहार उत्तमक्षमाऐसी दो प्रकार की उत्तमक्षमा है ?
उत्तर--(प्रश्न ३८ के अनुसार उत्तर दो)
प्रश्न ४५-क्या निश्चय क्षुधापरिव्हजय और व्यवहार क्षुधापरिषहजय-ऐसी दो प्रकार की क्षुधापरिषहजय हैं ?
उत्तर-(प्रश्न ३८ के अनुसार उत्तर दो)
प्रश्न ४६-क्या निश्चय अनित्य भावना और व्यवहार अनित्य भावना-ऐसी दो प्रकार की अनित्य भावना हैं?
उत्तर-(प्रश्न ३८ के अनुसार उत्तर दो)
प्रश्न ४७-निश्चय और व्यवहार के विषय में चरणानुयोग का क्या प्रयोजन है ?
उत्तर-(अ) एकदेश व सर्वदेश वीतरागता होने पर ऐसी श्रावक दशा मुनिदशा होती है, क्योकि इनके निमित्त-नैमित्तिकपना पाया जाता है। ऐसा जानकर श्रावक-मुनिधर्म के विशेष पहिचानकर जैसा अपना वीतराग भाव हुआ हो-वैसा अपने योग्य धर्म को साधते हैं । वहाँ जितने अश मे वीतरागता होती है उसे कार्यकारी जानते है, जितने अश मे राग रहता है, उसे हेय जानते है । सम्पूर्ण वीतरागता को परम धर्म मानते हैं-ऐसा चरणानुयोग का प्रयोजन है ।
मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २७१] (आ) धर्म तो निश्चयरूप मोक्षमार्ग है वही है, उसके साधनादिक उपचार से धर्म है।
[मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २७७] (इ) निश्चय धर्म तो वीतरागभाव है, अन्य नाना विशेष वाह्य साधन की अपेक्षा उपचार से किए है उनको व्यवहार मात्र धर्म सज्ञा जानना।
[मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २३३]